राष्ट्रकूट उन अधिकारियों को कहा जाता था जो राष्ट्र नामक राजनीति इकाई अथवा भूभाग पर शासन करते थे। राष्ट्रकूट पहले बादामी के चालुक्यों के अंतर्गत जिला अधिकारी थे। इनकी मातृभाषा कन्नड़ थी और इनके पूर्वज 640 ई में बरार प्रदेश में सामंतों के रूप में शासन करने लगे थे।
राष्ट्रकूट वंश का स्थापना, दंतीदुर्ग किस वंश का संस्थापक था
जिस समय दंती दुर्ग का उदय हुआ राष्ट्रकूट चार पीढ़ियों से महाराष्ट्र में रह रहे थे । 742 ई में दंतीदुर्ग का एलोरा पर अधिकार था और वह चालुक्य शासक कीर्तिवर्मन(2) का सामंत था ।उसने कीर्तिवर्मन(2)को हराकर बदामी को छीन लिया और पूरे महाराष्ट्र का स्वामी बन गया। उसने गुजरात तथा मध्य एवं उत्तरी मध्य प्रदेश के अधिकांश भाग को अपने राज्य में मिला लिया।
750 ई में उसने काँची के पल्लव शासक नंदीवर्मन(2) पर आक्रमण किया किंतु बाद में दोनों में संधि हो गई और इस संधि को स्थायित्व प्रदान करने के उद्देश्य से उसने अपनी कन्या रेवा का विवाह नंदिवर्मन के साथ कर दिया ।
राष्ट्रकूटों का विजय अभियान
दंतिदुर्ग का कोई पुत्र नहीं था। उसके बाद उसका चाचा कृष्ण प्रथम राजा बना उसने कोंकड़ को जीता और चालूक्यों की शक्ति को नष्ट कर दिया। गंग शासक को भी उसकी अधीनता स्वीकार करनी पड़ी उसने युवराज गोविंद को एक सेना के साथ पूर्वी चालूक्यों के विरुद्ध भेजा और वेंगी के शासक विजयादित्य को राष्ट्रकूट सत्ता स्वीकार करनी पड़ी।
इन विजयों के उपलक्ष्य में उसने राजाधिराज परमेश्वर की उपाधि धारण की विजेता होने के साथ-साथ कृष्ण प्रथम एक महान निर्माता भी था। उसने एलोरा का प्रसिद्ध कैलाश मंदिर बनवाया जो शिव को समर्पित है यह मंदिर पूरी पहाड़ी को काटकर बनाया गया था और इसमें कोई जोड़ नहीं मिलता और यह भारतीय वास्तुकला का सर्वोत्कृष्ट और अनुपम दृष्टांत माना जाता है ।
राष्ट्रकूट राजा ध्रुव
कृष्ण प्रथम के बाद उसका पुत्र गोविंद द्वितीय(772 ई ) गद्दी पर बैठा ।वह एक दुर्बल शासक था उसके भाई ध्रुव ने उसे गद्दी से हटा दिया और स्वयं राजा बन गया ध्रुव महत्वाकांक्षी विजेता था। उसने मालवा के गुर्जर वत्सराज को मरुस्थल में खदेड़ दिया और फिर गंगा यमुना के दोआब पर आक्रमण किया यहां उसने बंगाल के शासक धर्मपाल को हराया। उसने वेंगी के शासक से भी उसके राज्य का कुछ प्रदेश छीन लिया बाद में चालुक्य शासक ने अपनी पुत्री का विवाह उसके साथ कर दिया इस तरह इस समय भारतवर्ष का कोई अन्य राजवंश ध्रुव की शक्ति को चुनौती देने की स्थिति में नहीं था.
ध्रुव के 4 पुत्र थे जिसमें से गोविंद सबसे अधिक योग्य था और ध्रुव ने उसे अपना उत्तराधिकारी चुना उसने वेंगी के चालूक्यों बंगाल के धर्मपाल तथा कन्नौज के चक्र युद्ध को परास्त कर दिया दक्षिण के सभी राजवंश उससे डरते थे ।उसे राष्ट्रकूट वंश का सर्वश्रेष्ठ शासक माना जाता है।
गोविंद तृतीय के बाद उसका पुत्र अमोघ वर्ष प्रथम राजा बना। उसने 1814 ईस्वी से 1880 ईस्वी तक लगभग 66 वर्षों तक शासन किया ।किंतु उसके शासनकाल में कभी भी शांति नहीं रही और राज्य में अराजकता का माहौल बना रहा वह स्वभाव से शांतिप्रिय था। उसकी रूचि जैन धर्म की ओर थी। वह स्वयं कविता करता था और उसने राजमार्ग एवं प्रश्नोत्तर रत्न मालिका ग्रंथ लिखे उसकी राजधानी मान्यखेट थी।
अमोघवर्ष के बाद कृष्ण द्वितीय राजा बना इस समय राष्ट्रकूट दुर्बल हो गए थे। मालवा और गुजरात में प्रतिहार शासक ने राष्ट्रकूट को दबा रखा था।उसके समय में वेंगी के चालुक्य शासक विजयादित्य तृतीय तथा भोज प्रथम ने राष्ट्रकूट को हराया। 914 ईस्वी में उसकी मृत्यु के बाद उसका पौत्र इंद्र तृतीय राजा बना वह एक प्रतापी शासक था और उसने प्रतिहार शासक महिपाल को पराजित किया।
राष्ट्रकूट वंश का पतन
इस वंश का अंतिम शासक कृष्ण तृतीय था। यह 939 ईस्वी में राजा बना उसने चोल राजा परांतक को हराकर उसके बहुत बड़े भाग को अपने राज्य में मिला लिया । और प्रतिहार शासक महिपाल को हराकर उससे सुराष्ट्र छीन लिया । वह चोलों के साथ युद्ध शुरू किया लेकिन वह पराजित हो गया ।
कृष्ण तृतीय के बाद राष्ट्रकूट वंश का पतन प्रारम्भ हो गया । 963 ईस्वी में तारवाड़ी प्रांत को अपने प्रतिपक्षी चालुक्य तैलप द्वितीय को पुरस्कार के रूप में दे दिया। राष्ट्रकूट वंश के लिए इसका बड़ा घातक परिणाम निकला। कृष्ण के बाद उसका छोटा भाई खोटिड़ गद्दी पर बैठा उसके शासनकाल में परमार शासक सियंक ने मान्यखेट पर आक्रमण कर उसे तहस-नहस कर दिया।
उसके बाद कर्क राजा बना।चालुक्य शासक तैलप द्वितीय ने जिसने कल्याणी के चालुक्य शाखा की स्थापना की। 1973- 74 में उसे गद्दी से हटा दिया और राष्ट्रकूट शक्ति को समाप्त कर दिया।
राष्ट्रकूट वंश का योगदान
राष्ट्रकूटों ने लगभग 250 वर्षों तक दक्षिण भारत के एक बड़े भूभाग पर अपना प्रभाव बनाए रखा। कृष्ण तृतीय रामेश्वरम तक विजय हुआ था। अरब लेखकों के अनुसार राष्ट्रकूट भारत के सर्वश्रेष्ठ शासक थे। राष्ट्रकूट शासक हिंदू धर्म मानने वाले थे। तथा शिव और विष्णु के उपासक थे किंतु अन्य संप्रदायों के प्रति उनका दृष्टिकोण उदार पूर्ण था अमोघ वर्ष जैन धर्म का अनुयाई था ।अमोघवर्ष जैन होने पर भी हिंदू धर्म का आदर करता था ।उसके शासनकाल में धार्मिक आधार पर कभी कोई उपद्रव या विद्रोह नहीं हुआ।
कला के क्षेत्र में राष्ट्रकूटों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया ।उनकी स्थापत्य कला का उत्कर्ष एलोरा के कैलाश मंदिर में देखा जा सकता है इसकी दीवारों पर विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाई गई है। राष्ट्रकूटों के निर्माण कार्य मुख्यता अजंता, एलोरा, एलिफेंटा तथा मालखेड़ में केंद्रित था और शिलाखंड को काटकर बनाया गया दशावतार मंदिर राष्ट्रकूट कला का एक सुंदर उदाहरण है।यह लोग साहित्य और शिक्षा के प्रेमी थे और विद्यालयों तथा शिक्षा संस्थानों को उदारता पूर्वक दान देते थे
महाजनपद काल का इतिहास और 30+Questions