मगध सोलह महजनपदों मे से एक था । प्रारम्भ मे इसमें गया और पटना जिले तक आते थे। इनकी राजधानी गिरिव्रज थी । महाभारत और पुराणों मे मगध के सबसे प्राचीन राजवंश का नाम बाहद्रथ था । जिसमे वृहद्रथ एक प्रसिद्ध राजा हुआ ।
इसका पुत्र जरासंध इस वंश का सबसे महत्वपूर्ण शासक था। जो महाभारत के अनुसार पांडव वीर भीम के हाथों मारा गया था । इसने कई राजाओं को बंदी बना लिया था । रिपुंजय इस शासक वंश का अंतिम शासक था ।
पुराणों मे वृहद्रथ कुल के तुरंत पश्चात शिशुनाग के द्वारा प्रारम्भ हुआ शैशुनाग वंश को शासन करते हुए बताया गया है । और इसी वंश मे बिम्बिसार को बताया गया है । पर पुराणों का मत गलत है । पाली बौद्ध साक्ष्यों से प्रमाणित होता है कि शिशुनाग बिम्बिसार के कई पीढ़ियों के बाद आया है । वास्तव मे बाहद्रथ शासन वंश के बाद हर्यक कुल का शासन माना जाता है ।
मगध साम्राज्य का इतिहास
हर्यक कुल
यह वंश नाग जाति के लोगों से संबंधित था । हर्यक ( हरी = सर्प+अंक = चिन्ह ) शब्द का अर्थ होता है सर्प का चिन्ह । यह प्रतीत होता है की हर्यक कुल एक नाग जातीय शासन वंश था ।
बिम्बिसार
लगभग 543 ईसा पूर्व मे बिंबिसार के द्वारा हर्यक शासन वंश का प्रारम्भ माना जाता है । इनके पिता दक्षिण भारत के एक साधारण सामंत थे । इनके पिता का नाम हेमजित (क्षेमजित) था । सिंहली बौद्ध ग्रंथ के अनुसार 15 वर्ष की आयु मे बिम्बिसार को उसके पिता ने राजपद पर अभिषिक्त कर दिया था ।
बिम्बिसार का दूसरा नाम सेनिय (श्रेणिक) था और इसके पहले मगध साम्राज्य की राजधानी गिरिव्रज था । बिम्बिसार ने इसी नगर के नजदीक राजग्रह नामक एक नगर बासाया और इसे अपनी राजधानी बनाया ।
बिम्बिसार एक कुशल और मेधावी शासक था । और उसमें अपने समय की राजनीतिक स्थिति को समझने की क्षमता थी । इस समय कोशल और अवन्ति के राज्य अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने का प्रयास कर रहे थे ।
उसके राज्य से सटा हुआ वत्स एक शक्तिशाली राजतंत्र था । उसके राज्य के उत्तर मे वज्जियों का शक्तिशाली गणराज्य था ।
युद्ध नीति
बिम्बिसार के राज्य के पूर्व मे अंग राज्य था । अंग के साथ मगध की पुरानी शत्रुता थी और बिम्बिसार ने इस राज्य की ओर पहले ध्यान दिया और उसने अंग राज्य के राजा ब्रहमदत्त को पराजित कर मुंगेर और भागलपुर के कुछ हिस्सों को अपने राज्य मे मिला लिया ।
अंग मगध का एक प्रांत था । जो मगध के राजकुमार अजातशत्रु के द्वारा शासित होता था ।
बिम्बिसार के समय मगध साम्राज्य का राज्य विस्तार दोगुना हो गया था । बिम्बिसार ने कुशल नीतिज्ञ होने का परिचय दिया । उसने अनावश्यक युद्ध से बचने का प्रयास किया और युद्ध के स्थान पर नीति द्वारा मगध की स्थिति को मजबूत बनाया ।
अजातशत्रु
यह बिम्बिसार का पुत्र था । इसका दूसरा नाम कूणिक था । अपने पिता के शासन काल मे वह अंग मे प्रांतीय शासक था । लगभग 490 ईसा पूर्व मे वह अपने पिता को बंदीग्रह मे डालकर सिंहासन पर बैठ गया।
बिम्बिसार द्वारा मगध साम्राज्य की स्थिति को पहले से काफी शक्तिशाली बनाया जा चुका था । अजातशत्रु का शासन कल हर्यक कुल की शक्ति का चरमोत्कर्ष का काल था ।
शैशुनाग वंश
इस वंश का नाम इसके प्रथम शासक शिशुनाग के नाम पर आधारित है । उसके नाम से ऐसा लगता है की शिशुनाग भी नागों के किसी वंश से संबंध रखते थे ।
शासक बनने के पहले शिशुनाग काशी का प्रांतीय शासक था । नागदासक के विरुद्ध विद्रोह कर जनता ने उसे शासक बनने के लिए आमंत्रित किया । जनता का यह चयन से यह स्पष्ट होता है की वह एक कुशल व्यक्ति था ।
इस समय अवन्ति का राज्य मगध साम्राज्य का अकेला शक्तिशाली राज्य बचा हुआ था । शिशुनाग ने अवन्ति को जीतकर उसे मगध राज्य मे मिला लिया । इस प्रकार इस समय मे मगध का विस्तार गंगा की घाटी से बाहर निकलकर अवन्ति तक पहुँच गया था ।
काशी मे उसने अपने एक पुत्र को प्रांतीय शासक के रूप मे नियुक्त किया । वैशाली उसके राज्य का दूसरा प्रशासकीय केंद्र था। पंजाब और सीमांत प्रदेशों को छोड़कर अब संपूर्ण उत्तर भारत मगध राज्य के अंतर्गत आता था ।
शिशुनाग के उतराधिकारी
शिशुनाग के बाद उसका पुत्र कालाशोक शासक बना । उसका एक नाम काकवर्ण भी मिलता है । उसने फिर पटलिपुत्र को राजधानी बनाया । कालाशोक के समय वैशाली मे बौद्धों की दूसरी संगीति संपन्न हुई ।
बौद्ध साहित्यों मे कलाकोश के दस पुत्रों का नाम आता है जिन्होंने साथ साथ शासन किया । पुराणों मे केवल नंदिवर्धन का नाम मिलता है । इस शासन वंश के पश्चात नन्द वंश का शासन प्रारम्भ होता है ।
नन्द वंश
वंश परिचय
ब्राह्मण साहित्य के अनुसार नन्द वंश का प्रथम शासक महापद्म था । पाली साहित्य मे उसका नाम अग्रसेन बताया गया है । पुराणों के अनुसार प्रथम नन्द, शैशु नाग राजा की शूद्र स्त्री से उत्पन्न हुआ था । जैन ग्रंथ मे उसे नाई का पुत्र बताया गया है । जो एक वेश्या से उत्पन्न हुआ था । उसका पिता नाई था जो अपनी सुंदरता के कारण रानी का कृपा पात्र बन गया ।
बाद मे रानी के सहयोग से उसने राजा की हत्या कर दी और राजकुमारों का संरक्षक होने के बहाने शासन करने लगा और बाद मे राजकुमारों को भी मार डाला ।
सभी साक्ष्यों से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रथम नन्द निम्न कुल का था जो षड्यंत्र कर शासक बना था ।
महापद्म नन्द
इस वंश का प्रारम्भ लगभग 355 ई.पू मे हुआ था । इसमें कुल मिलकर 9 शासक हुए जिनमें प्रथम शासक महापद्म नन्द ही सबसे महत्वपूर्ण शासक था । पुराणों मे उसे एक लोभी और प्रतापी शासक बताया गया है । उसे सभी समकालीन क्षत्रिय शासन वंशों का विनाश करने वाला बताया गया है
इसमें पांचालों, हैहयों, कलिंगों, शूरसेन, अश्मकों तथा मैथिलों के नाम गिनाए गए है । पुराणों के अनुसार उसका, हिमालय तथा विन्ध्य पर्वतों के बीच संपूर्ण क्षेत्र पर उसका अधिकार हो गया था ।
उसके समय मे पहली बार मगध (magadh samrajya)का विस्तार कलिंग तक हो गया था । महापद्मनंद की सैनिक शक्ति विशाल थी । उग्रसेन और महापद्मनंद दोनों उसकी उपाधियाँ थी । जो उसकी सेना की विशालता और अपार शक्ति की ओर संकेत करता है ।
जिस समय मगध साम्राज्य मे नंदों का राज्य चल रहा था । उसी समय यूनान के महान विजेता सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया । सिकंदर ने व्यास नदी के पश्चिम तक के प्रदेशों को जीत लिया था। पर व्यास नदी के पूर्व प्रदेश पर शक्तिशाली नंदवंश का शासन था ।
नंद शासक की सैनिक शक्ति के बारे मे सिकंदर के सिपाहियों ने सुन रखा था और सिकंदर के लाख समझाने पर भी आगे बढ़ने से इंकार कर दिया ।
महापद्मनंद के उत्तराधिकारी
पुराणों मे महापद्मनंद के 8 पुत्र बताए गए है । उन्होने 12 वर्ष तक शासन किया । बौद्ध ग्रंथ महाबोधिवंश मे 9 नामों की सूची मिलती हैं । जिनमे अंतिम राजा धननंद है ।
नंद वंश का अंत
नंद शासक बहुत लोभी थे । जिन्होंने ऐसी वस्तुओं पर भी कर लगाया था जिन पर पहले कभी कर नहीं लगाया गया था । नंद वंश के उग्र सैनिक नीति के कारण लोगों मे असंतोष पैदा हो गया था। इन सभी कारणों से जनता इनसे घृणा करते थे ।
अंत मे चंद्रगुप्त ने चाणक्य के सहयोग से नंद राज्य पर आक्रमण कर दिया । सैनिक शक्ति मे कमजोर होने पर भी आंतरिक अशांति और अव्यवस्था के कारण नंद शासक इस युद्ध का सामना नहीं कर सका और चन्द्रगुप्त मौर्य ने उसे पराजित कर मौर्य वंश की स्थापना करने मे सफल रहा।