बालाजी विश्वनाथ | peshwa balaji vishwanath

बालाजी विश्वनाथ
बालाजी विश्वनाथ

Peshwa Balaji Vishwanath

पेशवा बालाजी विश्वनाथ का जन्म कोकड़ प्रदेश के श्रीवर्धन गाँव के छितपावन ब्राह्मण के भट्ट परिवार मे 1662 ई. मे हुआ था । यह गाँव जंजीरा के सीदियों के शासन के अंतर्गत था। इनसे शत्रुता हो जाने के कारण बालाजी विश्वनाथ अपने परिवार सहित महाराष्ट्र चले गए ।

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बालाजी विश्वनाथ ने मराठा सेनानायक धनाजी जाधव के यहाँ नौकरी कर ली और 1699 से 1708 ई. के बीच बालाजी धनाजी के तरफ से  दौलताबाद का सर सूबेदार रहा । इसी पद पर काम करते हुए वे साहू जी के संपर्क मे आए जो उन दिनों मे औरंगजेब ने नजरबंद करके रखा था ।

जन्म 1662 ई.
पूरा नाम पेशवा बालाजी विश्वनाथ भट्ट
पत्नी राधा बाई
पुत्र बाजीराव प्रथम  
पिता विश्वनाथ विसाजी देशमुख (भट्ट)
धर्म हिन्दू
मृत्यु 2 अप्रैल 1720 ई.
भाषा मराठी

खेड़ के युद्ध मे बालाजी के कहने पर सेनापति धनाजी ने शाहू का साथ दिया था। बालाजी विश्वनाथ भी शाहू जी के साथ आ गए और मरते दम तक निष्ठा पूर्वक सेवा करते रहे ।

बालाजी विश्वनाथ का शाहू को सहयोग

जून 1708 ई. मे सेनापति धनाजी जाधव की मृत्यु हो गई । शाहू जी ने धनाजी के पुत्र चन्द्र्सेन को अपना सेनापति बना दिया था । पर शाहू जी को अपने सेनापति पर भरोसा नहीं था वह गुप्त रूप से तारा बाई के संपर्क मे था ।

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इसलिए शाहू जी ने 1708 ई.मे उसने बालाजी विश्वनाथ को सेनाकर्ते के पद पर नियुक्त कर दिया, ताकि वह चन्द्र्सेन की कार्यवाही पर नजर रख सके । और कुछ दिनों बाद चन्द्रसेन विश्वासघात कर तारा बाई से मिल गया ।

पेशवा पद पर नियुक्ति

16 नवंबर , 1713 ई को मंजरी नामक स्थान पर बालाजी विश्वनाथ को पेशवा बनाया गया । बालाजी के पेशवा बनते ही शस्त्र बल की अपेक्षा कूटनीति से काम लिया और कई मराठा सामंत को शाहू के पक्ष में कर लिया । तथा तारा बाई को जुलाई 1714 ई में रामचंद्र ने तारा बाई और शिवाजी द्वितीय को बंदी बना लिया । और उसके स्थान पर राजाराम की दूसरी पत्नी राजसाबाई और उसके पुत्र शम्भाजी द्वतीय को गद्दी पर बैठाया ।

शाहू के राज्याभिषेक के बाद भी कई मराठा सरदार लूटमार करने में लगे हुए थे और वे शाहू की केंद्रीय सत्ता का बिलकुल सम्मान नहीं करते थे । ऐसे सरदारों में कृष्णराव, खटाबकर, दाभाजी और उदाजी चौहान मुख्य थे ।

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बालाजी जी ने सबसे पहले कृष्णराव को युद्ध में पराजित कर उसे मार डाला । 1718 ई. में दाभाजी पर आक्रमण किया गया और उसे बंदी बना लिया गया । उदाजी चौहान के ऊपर भी कार्यवाही किया गया पर वह वहाँ से भाग निकला ।

इस प्रकार बालाजी विश्वनाथ ने मराठा साम्राज्य की घरेलु संकट को ख़त्म कर शाहू की शक्ति को मजबूत बनाया ।

सैय्यद बंधुओं के साथ समझौता

बालाजी विश्वनाथ का सबसे महत्वपूर्ण कार्य दक्षिण के 6 मुग़ल से चौथ और सरदेशमुखी वसूल करने का शाही फरमान प्राप्त करना था ।

बहादुर शाह की मृत्यु के बाद जँहादार शाह दिल्ली के सिहासन  पर बैठा । पर 1713 ई. में सैय्यद बंधुओं ने अब्दुल्ला खां और हुसैन अली खान की सहायता से जँहादार शाह को हटाकर फर्रूखशियर मुग़ल बादशाह बन गया ।

पर फर्रूखशियर की सैय्यद बंधुओं से नहीं बना और उसने उन्हें समाप्त करने की योजना बनाया । और छोटे भाई हुसैनअली को सूबेदार बनाकर दिल्ली से दूर भेज दिया और  दक्षिण में उसे मराठों का दमन करने के लिए भेज दिया ।

हुसैनअली खान ने दक्षिण में मराठों का दमन करना चाहा पर वह इस कार्य में सफल नहीं हो सका। इसी समय उसे फर्रूखशियर की गुप्त योजना का पता चल गया । दिल्ली में उसके बड़े भाई अब्दुल्ला की स्थिति संकटप्रद  हो गया और उसने हुसैन अली को दिल्ली आने के लिए बुलावा भेजा .

हुसैनअली ने इस संकट के समय मे स्थिति को अनुकूल बनाने का प्रयास किया और बालाजी विश्वनाथ से संधि का प्रयास करने लगा । पेशवा बालाजी विश्वनाथ के कारण दोनों पक्षों 1719 ई.ने समझौता हो गया ।

इस समझौते के अनुसार मुगलों ने शाहू को वे सभी प्रदेश और किले जो शिवाजी के स्वराज्य के अंतर्गत थे उनको वापिस देने का वचन दिया । शाहू को दक्षिण के 6 मुगल सूबों से चौथ और सरदेशमुखी वसूल करने का वचन दिया।

शाहू की माता, पत्नी, भाई जो मुगलों के कैद मे थे उनको छोड़ने का वचन दिया । बदले मे शाहू ने मुगल बादशाह को 10 लाख वार्षिक भेंट देने तथा दक्षिण मे शांति तथा वयवस्था बनाए रखने और बादशाह की सेवा मे 15000 मराठा घुड़सवार रखने का वचन दिया ।

यह एक महत्वपूर्ण संधि था । इसके द्वारा पेशवा बालाजी विश्वनाथ ने न केवल शाहू की अपितु अपने देश की बहुमूलय सेवा की । इससे महाराष्ट्र मे शाहू की स्थिति बढ़ गई और पहली बार दक्षिण की शासन व्यवस्था मे मराठे के साझीदार बन गए।

इससे महाराष्ट्र के जनता को लूटमार से राहत मिल गया । हुसैनअली के साथ दिल्ली जाने पर मराठों को केंद्रीय सत्ता का असली स्वरूप मालूम हुआ, जिससे प्रेरित होकर अपना प्रभाव बढ़ाने का मार्ग मिल गया ।

पेशवा बालाजी विश्वनाथ का दिल्ली यात्रा

फर्रूखशियर के साथ हुई संधि को मनाने से इंकार कर दिया । इस पर सैयद हुसैनअली 15,000 मराठा सैनिकों के साथ दिल्ली पहुँच गया ।

मराठा सेना के साथ पेशवा बालाजी विश्वनाथ और उसका पुत्र बाजीराव, सेनापति खाँड़ेराव धाभड़े, संताजी भोसले आदि नेता थे ।

दिल्ली पहुँचने के बाद सैय्यद हुसैनअली ने अपने भाई के साथ फर्रूखशियर को मार डाला । उसके स्थान पर रफी-उद-दराजत को सम्राट बनाया गया ।

नए सम्राट से पेशवा बालाजी विश्वनाथ को तीन फरमान मिले ।

  1. तंजौर, त्रिचीनापल्ली तथा मैसूर सहायक राज्यों सहित दक्षिण के 6 सूबों के लिए चौथ का अधिकार दिया गया ।
  2. दक्षिण के क्षेत्रों से सरदेशमुखी का अधिकार ।
  3. शिवाजी के स्वराज्य पर शाहू के अधिकार को मान्यता 
  4. शाहू के सभी परिवार के सभी सदस्यों को रिहा कर दिया गया

मराठों की यह दिल्ली यात्रा बहुत महत्वपूर्ण साबित हुआ । दक्षिण की जनता जिन मुगलों से आतंकित थे,इससे उनकी सत्ता का खोखला पन उन्हें स्पष्ट हो गया ।

दिल्ली से वापस आने बाद पेशवा बालाजी विश्वनाथ ने उत्तर भारत मे मराठा शक्ति के प्रचार की योजना बनाई । परंतु इसके पहले ही 1720 ई. मे पेशवा बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु गई ।

पेशवा बालाजी विश्वनाथ की उपलब्धि

  1. बालाजी विश्वनाथ के पेशवा बनने से पहले मराठा साम्राज्य अव्यवस्थित एवं गृह युद्ध के विनाश से पीड़ित था । लेकिन बालाजी जी ने अपने कठोर परिश्रम से मराठा साम्राज्य को एक कर एक शक्तिशाली साम्राज्य स्थापित किया ।
  2. पेशवा बालाजी विश्वनाथ अपने समय का एक योग्य कूटनीतिज्ञ था ।
  3. बालाजी विश्वनाथ ने पेशवा पद के सम्मान और प्रभाव मे इतनी वृद्धि कर दिया की अंत मे पेशवा मराठा छत्रपती से भी अधिक शक्तिशाली हो गया ।
  4. उसने मराठों को भयंकर गृह युद्ध से बचाकर सभी को संगठित किया ।
  5. बालाजी विश्वनाथ ने मराठा संघ की नीव रखी । इसके अंतर्गत सभी सामंतों को उनकी जागीरों मे स्थायी किया गया और ये मराठा सरदार अपने-अपने क्षेत्र मे स्वतंत्र होते थे । तथा अपने क्षेत्र से चौथ तथा सरदेसमुखी वसूल कर, अपने हिस्से का धन निकाल बचें हुए धन को सरकारी कोष मे जमा करा देते थे ।