तुलसीदास(tulsidas)जी को हिन्दी का सबसे बड़ा कवि माना जाता है । इनकी सबसे प्रसिद्ध पुस्तक रामचरित मानस है, जो आज भारत में धार्मिक पुस्तक के रूप में जाना जाता है । हिन्दी के किसी भी कवि ने जनता को इतना प्रभावित नहीं किया ।
तुलसी दास जी ने अपनी रचनाओं के द्वारा हिन्दू जाती को एक पक्का आधार प्रदान किया। ज्ञान का मार्ग सभी के लिए साधारण नहीं हो सकता। इसलिए तुलसी दास जी नें सगुण भक्ति का मार्ग दिखाया था। जिस पर चलकर आशिक्षित लोग भगवान की कृपा और मुक्ति पाने की आशा करते थे ।
तुलसीदास का जीवन परिचय
तुलसी दास (tulsidas)के जीवन के बारें में कई मतभेद है । कुछ लोग कहते है की यह राजापुर गाँव के रहने वाले थे । दूसरे विद्वानो का कहना है है कि इनका जन्म सोरों में हुआ था ।
तुलसीदास जी का जन्म सवंत 1554 श्रावण शुक्ल सप्तमी को हुआ था ।इनके पिता का नाम आत्मा राम दुबे तथा माता का नाम हुलसी था ।
तुलसी दास(tulsidas) जी जन्म के समय पाँच साधारण बच्चों की तुलना मे बड़े थे । उनके मुँह में पूरे दाँत भी थे । इससे भयभीत होकर उनके माता पिता ने उनको त्याग दिया और पालन पोषण के लिए मुनिया नाम के एक दासी को दे दिया था । यह कहा जाता है की उनका जन्म अशुभ नक्षत्र में हुआ था । इसलिए उनके माता पिता ने उनको त्याग दिया था ।
पाँच वर्ष के बाद दासी मुनिया की भी मृत्यु हो गई इसके बाद तुलसी दास को इधर उधर भटकने के अलावा और कोई सहारा न था। उन्होने कुछ समय तक भिक्षा मांग कर अपना जीवन यापन किया ।
कुछ समय बाद बाबा नरहरिदास ने अपने पास रख लिया । नरहरिदास के साथ तुलसी दास काशी चले गए । यहाँ उन्होने शेष सनातन नामक विद्वान से शिक्षा ली । 15 वर्ष तक अध्ययन करने के बाद अपने गाँव राजापुर लौट गए ।
तुलसीदास का विवाह रूपवती कन्या रत्नावली से हुआ था । तुलसी दास अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करते थे । कहा जाता है कि एक बार रत्नावली बिना बतायें अपने मायके चली गई । तुलसीदास को अपनी पत्नी के बिना रहना बहुत कठिन प्रतीत तो रहा था ।
बरसात का मौसम था जिसके कारण नदियों में बहुत पानी भरा हुआ था इन सभी को पार कर तुलसी दास जी रात में रत्नावली के पास पहुँच गए थे । इस पर रत्नावली ने आवेश मे कहा
लाज न लागन आपको, दौरे आपहु साथ ।
फिर फिर ऐसे प्रेम को, कहा कहौं मै नाथ।
अस्थि चर्म मय देह मम, तासों जैसी प्रीति !
नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत।
इसके बाद तुलसी दास (tulsidas)जी ने गृहस्थ जीवन छोड़कर प्रभु के भक्ति में अपना जीवन व्यतीत किया ।
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मृत्यु
तुलसीदास की मृत्यु सन 1680 में काशी में हुआ था। अपने जीवन के अंतिम दिनों में तुलसीदास रोग ग्रस्त रहे उन दिनों काशी में प्लेग फैला था। तुलसीदास जी को भी प्लेग हुआ था। जिसे उन्होंने बाहुबल की पीड़ा कहा इससे व्यथित होकर उन्होंने हनुमान बाहुक नामक ग्रंथ की रचना की कहते हैं कि इससे उनका रोग शांत हो गया था पर उसके कुछ ही समय पश्चात उनकी मृत्यु हो गई।
रचनाएं
- रामचरितमानस
- विनय पत्रिका
- दोहावली
- कवितावली
- गीतावली
- रामलला
- वैराग्य संदीपनी
- पार्वती मंगल
- जानकी मंगल
- कृष्ण गीतावली
तुलसीदास जी की सभी रचनाएं सुंदर है परंतु रामचरितमानस में रामायण की कथा कही गई है रामचरितमानस का प्रचार हिंदी के अन्य किसी भी ग्रंथ की अपेक्षा कहीं अधिक है इसकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण यह है कि इसमें कविता के संदर्भ के साथ-साथ मनुष्य के शेष शब्दों का भी प्रतिपादन किया गया है।
तुलसीदास जी ने राम लक्ष्मण भरत सीता इत्यादि पात्रों द्वारा हमारे सम्मुख वे आदर्श स्थापित करवा दिए हैं जिनके अनुसार मनुष्य को जीवन बनाने का प्रयत्न करना चाहिए। एक प्रकार से रामचरितमानस का ज्ञान होने के साथ-साथ अचार ग्रंथ और धर्म ग्रंथ भी है।
देश के करोड़ों शिक्षित और अशिक्षित लोग शताब्दियों से रामचरितमानस को धर्म ग्रंथ जैसा आदर देते आए हैं रामचरितमानस में बताया गया है कि किन परिस्थितियों में मनुष्य को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए।
पिता, पुत्र, पत्नी, भाई, राजा, प्रजा गुरु और शिष्य सभी के कर्तव्यों का प्रतिपादन कहानी के प्रसंग में स्वयं ही हो गया है और संपूर्ण रामचरितमानस से यह शिक्षा मिलती है कि मनुष्य का जीवन राम इत्यादि की भांति बिताना चाहिए रावण की तरह नहीं। रामचरितमानस का सार यही है कि विजय हमेशा सत्य का होता है, पाप अंत में पराजित हो ही जाता है।
विनय पत्रिका में ज्ञान वैराग्य और भक्ति के पद लिखे गए हैं तुलसीदास जी राम के अनन्य भक्त थे राम को वे सब देवी देवताओं से बड़ा मानते थे। उन दिनों वैष्णव और शैव में शिव और विष्णु को एक दूसरे से बड़ा सिद्ध करने के लिए बात चला करता था।
पर तुलसीदास जी हृदय संकीर्ण नहीं था। उन्होंने अपनी विनय पत्रिका में राम के साथ-साथ अन्य सभी देवी देवताओं की अलग-अलग स्तुति की है। विनय पत्रिका अपने ढंग का अनोखा ग्रंथ है भक्तों की जैसी दीनता आत्मसमर्पण और बविनय की भावना इसमें मिलती है वैसे अब कहीं नहीं मिलती।
गीतावली में रामकथा सूरसागर की भांति पद शैली में वर्णित है। कवितावली में कविता कवित्त और सवैयों में राम कथा कही गई है पार्वती मंगल में शिव और पार्वती तथा जानकी मंगल में राम और सीता के विवाह का वर्णन है।
कला पक्ष
तुलसी कि कविता में भाव पक्ष तथा कला पक्ष संयोग मिलता है । दोनों सुंदरता में एक- दूसरे के प्रतियोगी है । उनकी काव्य कि भाषा अवधी है । यह अवधी भाषा अपने सभी सौंदर्य के साथ विराजती है । उनकी भाषा संगठित, अर्थमयी और प्रभावपूर्ण है ।
शब्द चित्र खींचने में तुलसीदास जी बेजोड़ है । उनका छंद विधान अति सुंदर है । चौपाई, दोहा, सोरठा, हरिगीतिका, कवित्त आदि अनेक छंदों का प्रयोग तुलसीदास जी ने किया है ।
साहित्य में स्थान
तुलसीदास का स्थान हिन्दी साहित्य में सबसे ऊंचा माना जाता है । उनकी तुलना जायसी और सूरदास से कि जाती है । जायसी तुलसी से पहले हुए थे । और सूरदास तुलसी के समय विद्यमान थे । उनका काव्य वाणी का कंठहार है । आज भी उनकी दिव्यवाणी घर-घर में गूँजता है। रामचरित मानस नें उन्हें अमर बना दिया ।
आचार्य राम चंद्र शुक्ल ने कहा है – यह एक कवि ही हिन्दी को साहित्य भाषा करने के लिए काफी है ।