तुलसीदास की रचनाएं, Tulsidas Ki Rachnaye
तुलसीदास जी की रचनाएं कौन–कौन सी है?
दोस्तों भारतीय साहित्य के महाकवि तुलसीदास जी का नाम तो हर कोई जानता ही है। क्या आप जानते हैं तुलसीदास जी का जन्म किस काल में हुआ था? तुलसीदास जी के माता पिता का नाम क्या था? तुलसीदास जी का पूरा नाम क्या था और तुलसीदास जी के द्वारा कुल कितनी रचनाएं लिखी गई थी? इसके अलावा उनमें से प्रमुख रचनाएं कौन सी थी और तुलसीदास जी के गुरु कौन थे। आज के अपने इस आर्टिकल में हम बात करेंगेतुलसीदास जी की रचनाएं कौन–कौन सी है? के बारे मेंइसलिए अगर आप भी महाकवि तुलसीदास की रचनाओं और उनके जीवन के बारे में जानना चाहते है तो यह आर्टिकल आपके लिये काफी महत्वपूर्ण होने वाला है। इसलिए इस आर्टिकल को अंत तक पढ़े। तभी आप महाकवि तुलसीदास के बारे के सम्पूर्ण जानकारियां हासिल कर पाओगे।
तुलसीदास जी का जीवन परिचय
देखिएतुलसीदास जी का पूरा नाम गोस्वामी तुलसीदास जी था और इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे और माता जी का नाम हुलसी था। इनका जन्म सरयूपारीण ब्राह्मण कुल में हुआ था। तुलसीदास जी का जन्म 1511 ई० में सोरों शूकरक्षेत्र नामक स्थान पर जिला कासगंज, राज्य उत्तर प्रदेश भारत में हुआ था। इनके बचपन का नाम रामबोला था। तुलसीदास जी के माता-पिता ने किसी कारणवश इनका त्याग करके इन्हें एक चुनियां नामक दासी के पास छोड़ दिया था। जब तुलसीदास जी मात्र साढ़े 5 वर्ष के थे तब चुनियां नमक दासी का भी देहांत हो गया, जिससे कि इनका कोई भी सहारा नहीं रहा
और यह इधर-उधर भटकते हुए अनाथों की तरह बचपन जीने को मजबूर हो गए। लेकिन बाद में तुलसीदास जी ने दीक्षा प्राप्त कर महाकाव्य साहित्य रचनाएं की और उन में जान डाल दी। इसलिए आज हम तुलसीदास जी के द्वारा रची गई कुछ रचनाओं का वर्णन करने जा रहे हैं।
तुलसीदास की प्रमुख रचना कौन सी है?
गोस्वामी तुलसीदास जी के द्वारा लिखी गई कुछ प्रमुख रचनाएं हैं जो इस प्रकार है। इन रचनाओं को गोस्वामी तुलसीदास जी ने बृज भाषा में वर्णित किया है:
1 – कृष्ण गीतावली:
इस ग्रंथ की रचना 1643 वी पूर्व के आसपास हुई थी। जिसके अंदर भगवान श्री कृष्ण के जीवन से संबंधित बाल रूप से लेकर युवावस्था तक की लीलाओं का सुंदर वर्णन किया गया है।
2 – गीतावली:
इस काव्य की रचना 1630 ई० के आसपास मानी जाती है। इसमें भगवान श्री राम जी की लीलाओं से लेकर युवावस्था तक का वर्णन किया गया है। अधिकतर विद्वान मानते हैं कि गीतावली और कृष्णा गीतावली मिलती-जुलती रचनाएं हैंऔर यह तुलसीदास जी की प्रमुख रचनाओं में से एक है।
3 – विनय पत्रिका:
तुलसीदास जी की एक सुंदर रचना में से यह भी एक है। इसमें प्रभु श्री राम जी की भक्ति भाव को तुलसीदास जी ने दर्शाया है और अपने आप को राम चरणों के अनुकूल कर दिया है। इस रचना की उत्पत्ति वर्ष 1631 के आसपास मानी जाती है। इसे राम गीतावली का रूप भी कहा जाता है।
4 – रामचरितमानस:
रामचरितमानस की रचना गोस्वामी जी ने 16वीं शताब्दी में की थी। इसमें उन्होंने राम चरित्र का संपूर्ण वर्णन किया है। यह तुलसीदास जी के द्वारा लिखी गई रचनाओं में से प्रमुख महाकाव्य रचना है।
5 – हनुमान बाहुक:
तुलसीदास जी के द्वारा हनुमान बाहुक भी एक पाठक रचना है जिसको इन्होंने 44 चरणों में विभाजित किया है। हनुमान बाहुक को हनुमान चालीसा केनाम से जाना जाता है। इसमें लिखी गई चौपाइयोंकाऐसे वर्णन किया गया है जिससे कि दुख, कष्ट, क्लेश और भूत पिशाचों से मनुष्य छुटकारा पा सकता है।
तुलसीदास जी की कुल कितनी रचनाएं हैं?
दोस्तों तुलसीदास जी के द्वारा रची गई कुल 12 रचनाएं हैं जिनमें से पांच बड़ी रचनाएं हैं और सात छोटी रचना है। इनके द्वारा रची गई पांच रतन छोटी रचना है जिन्हें क्रीड़ा रचनाएं भी कहा जा सकता है। इन रचनाओं का मात्र छोटे रूप में हीवर्णन किया गया है। जिनका वर्णन इस प्रकारसे है।
1 – जानकी मंगल
2 – वैराग्य संदीपनी
3 – रामलला नहछू
4 – बरवै रामायण
5 – पार्वती मंगल
तुलसीदास की सर्वश्रेष्ठ रचना कौन सी है?
गोस्वामी तुलसीदास जी की सर्वश्रेष्ठ रचना “रामचरितमानस” को माना गया है। इस महाकाव्य में तुलसीदास जी ने रामचरित्र का बहुत ही सुंदर और अनोखा वर्णन किया है। जिसको आज भी हमारी सिलेबस की किताबों में बड़ी ही शान से पढ़ाया जाता है। रामचरितमानस रचना को दुनिया भर के सौ उच्च कोटि के महाकाव्य रचनाओं में से 46वां स्थान प्राप्त है। जोकि अपने आप में एक भारत संस्कृति के अनुकूल सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है।
तुलसीदास की पहली रचना क्या है?
तुलसीदास जी के द्वारा की गई पहली रचना का नाम “वैराग्य संदीपनी” है। जिसको तुलसीदास जी ने चार हिस्सो में विभाजित किया था। छंद के रूप में दोहा के रूप में स्रोतां के रूप में और चौपाइयों के रूप में इसको विभाजित किया गया है।
तुलसीदास की 12 रचनाएं कौन सी है? | Tulsidas Ki 12 Rachnaye
हिंदी साहित्य के महान कवी बाल्मीकि का भी रूप माने जाने वाले तुलसीदास जी के जीवन काल में उनके द्वारा लिखी गई 12 रचनाएं नीचे दी गई है। जिनकाअबहम एक-एक करके विस्तार पूर्वक वर्णन करेंगे:
1 – जानकी मंगल
2 – कृष्ण गीतावली
3 – बरवै रामायण
4 – विनायक पत्रिका
5 – रामलला नहछू
6 – वैराग्यसंदीपनी
7 – पार्वती मंगल
8 – कवितावली
9 – रामचरितमानस
10 – गीतावली
11 – रामाज्ञ प्रश्न
12 – दोहावली
1 – जानकी मंगल:
दोस्तों जानकी मंगल में गोस्वामी तुलसीदास जी ने माता सीता जी के विवाह का पूर्ण वर्णन किया है। इसमें महाराजजनक के द्वारा रचे गए सीता मैया के स्वयंवर के बारे में वर्णन है। जब विश्वामित्र जी, भगवान राम और लक्ष्मण को राक्षसों का संहार करने के लिए और यज्ञ पूर्ति के लिए अपने साथ लेकर आए थे। इस दौरान महाराजा जनक के द्वारा रखे सीता के स्वयंवर में विश्वामित्र जी, भगवान राम और उनके छोटे भाई लक्ष्मण को लेकर पहुंचे थे। इसका भी वर्णन इस रचना में प्रमुख रूप से किया गया है। स्वयंवर के दौरान धनुष तोड़ने से लेकर भगवान परशुराम जी के आने तक और भगवान राम के साथ वाद-विवाद करने तक का भी सुंदर वर्णन किया गया है। इसमें महाराजा जनक के द्वारा महाराजा दशरथ और पुरुषोत्तम श्री राम जी के संग आये बरातियों का स्वागत और उनके आदर – सम्मान का भी विवरण किया गया है। स्वयंवर से लेकर विदाई तक का इसमें पूर्ण रूप से वर्णन है साथ ही मंगल चरण और स्वयंवर चरण का व्याख्यान दोहो के रूप में अलग-अलग बहुत ही सुन्दर गान का वर्णन किया गया है।
2 – कृष्ण गीतावली:
दोस्तों कृष्ण गीतावली को गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है। जिसमें उन्होंने भगवान कृष्ण की बाल लीलाएं, युवा अवस्था की लीलाएं, गोपियों के संग किये गये रास लीलाएं और उनके द्वारा रची गई सभी प्रकार की लीलाओं का बहुत ही सुंदर वर्णन किया है। इस महाकाव्य को गोस्वामी तुलसीदास जी ने ब्रज भाषा में लिखा है जोकि वृंदावन की मूल भाषा मानी जाती है। कुछ महा विद्वानों का मानना है कि जब गोस्वामी तुलसीदास जी वृंदावन में भ्रमण करते हुए पहुंचे थे तो उन्होंने वहां पर इस महाकाव्य काल की रचना की होगी। कृष्ण गीतावली की रचना काल का समय 1642 ई० माना जाता है। इसको तुलसीदास जी की प्रौढ़ रचना के रूप में भी माना गया है।
3 – बरवै रामायण:
दोस्तों बरवै रामायण गोस्वामी तुलसीदास जी के द्वारा लिखा गया एक महाकाव्य की सर्वश्रेष्ठ रचना के रूप में माना जाता है। इसमें गोस्वामी तुलसीदास जी ने जितना भी व्याख्यान किया है वह सब छंदों के रूप में किया गया है। बरवै छन्दों की गिनती 69 है। इसमें तुलसीदास जी ने भगवान श्री राम जी के बाल कांड, अयोध्या कांड, लंका कांड इत्यादि का संपूर्ण वर्णन किया है। इस रचना को भी रामचरित्र मानस की रचना की तरह काण्डों में बांटा गया है। यह ग्रंथ भी अपने आप में बहुत ही विचित्र है। ऐसा माना जाता है कि राम चरित्र मानस और बरवै रामायण के 108 मनके करने का फल दोनों में बराबर मिलता है।
4 – विनायक पत्रिका:
विनायक पत्रिका गोस्वामी तुलसीदास जी के द्वारा रचे साहित्य रचना का एक ऐसा संग्रह है जिसमें 279 गीतों का बखान है। इसमें शुरुआत में 63 स्त्रोतों का गीत है जिसमें उन्होंने प्रमुख देवी – देवताओं का वर्णन किया है। जिसमें भक्ति का भरपूर गुण गुणगान किया है। जिसमें विष्णु, गणेश, शिव, पार्वती, हनुमान, गंगा, यमुना, काशी, चित्रकूट, सीता और भगवान राम जी की भक्ति का सुंदर वर्णन किया गया है। इन सब से यह पता चलता है कि तुलसीदास जी देवी देवताओं की कितना भक्ति भाव रखते थे। लेकिन यह तब तक ही मानते थे जब तक कि इन सब में भगवान राम जी का वर्णन ना हो। विनय पत्रिका में राम भक्ति का खूब वर्णन किया गया है। विनय पत्रिका में एक वर्णन राम गीतावली का भी है जिसमें 170 स्त्रोत गीतों का प्रभु राम के रूप में व्याख्यान किया गया है। विनय पत्रिका में ही पदावली रामायण नाम का वर्णन में भी 40 स्त्रोतों का गीत है। विनय पत्रिका की रचना 1666 ईस्वी पूर्व में मानी जाती है।
5 – रामलला नहछू:
रामलला नहछू गोस्वामी तुलसीदास जी की एक ऐसी रचना है जिसमें भगवान श्री राम जी के नाखून काटने का वर्णन किया गया है। इस वख्यान को लिखने का क्रम तुलसीदास जी ने लोक शैली सोहर और अवधी भाषा के रूप में अत्यधिक सुंदर किया है। यह रचना इतनी छोटी है कि इसमें भगवान श्री राम जी के पैर के नाखूनों को काटने का बहुत ही संस्कारी बालक रूप में चरित्र किया गया है। रामलला नहछू में जितना भी व्याख्यान किया गया है। वह सब दोहा के रूप में बहुत ही सुंदर राम जी के चरित्र से संबंधित है।
6 – वैराग्यसंदीपनी:
गोस्वामी तुलसीदास जी के द्वारा रची गई वैराग्यसंदीपनी को चार भागों में विभाजित किया गया है। जिसमें छंद, दोहा, सरोठा और चौपाई के रूप में वर्णन किया गया है। वैराग्यसंदीपनी में 14 चौपाई और 47 स्रोतों और दोहों का इस्तेमाल हुआ है। जिसमें यह स्पष्ट रूप से भगवान श्री राम और उनके छोटे भाई लक्ष्मण से संबंधित लीलाओं का वर्णन किया गया है। वैराग्यसंदीपनी को वैराग्य उपदेश से प्रस्तुत किया गया है। इस रचना के अनुसार कोई भी व्यक्ति बहुत ही आसानी से रामभक्ति को पा सकता है और उसके उपरांत सृष्टि के हर सुख की प्राप्ति आसानी से कर सकता है। भक्ति भाव को देखते हुए यह रचना भी अपने आप में बहुत से उल्लेखों का वर्णन करती है।
7 – पार्वती मंगल
दोस्तों पार्वती मंगल को तुलसीदास जी ने इस तरह से रचा है की इस साहित्य में उन्होंने पार्वती जी के मंगल विवाह की संपूर्ण वर्णन किया है। जैसे कि उन्होंने भगवान शिव को पाने के लिए कैसी तपस्या की, किस तरह से परीक्षाएं दी और इतना हठयोग किया कि अंत में उन्होंने भगवान शिव की प्राप्ति की। इसके अलावा पार्वती मंगल में इस चरित्र का भी वर्णन है कि भगवान शिव बारात लेकर कैसे आए, कैसे उनके बारातियों में भूत-प्रेत आदि उनके साथ राजा हिमालय के दरबार पर आये और भगवान शिव की सास यह सब देखकर अचंभित रह गई। यह सब सुंदर वर्णन इस “पार्वती मंगल” ग्रंथ की रचना में किया गया है। इस काव्य ग्रंथ की रचना कब हुई यह तो स्पष्ट नहीं है। लेकिन यह भी तुलसीदास जी के द्वारा लिखी गई समस्त रचनाओं में से एक सुंदर रचना का वर्णन है।
8 – कवितावली:
कवितावली साहित्य रचना में तुलसीदास जी ने समाज से संबंधित और व्यक्तिगत संबंधित जीवन की कृति और आकृतियों के बारे में संक्षेप में वर्णन किया है। इस रचना में तुलसीदास जी ने समस्त वर्णन चौपाइयों के अनुरूप समझाने का प्रयास किया है। जैसे कि इस संसार में रह रहे मजदूर लोग, किसान लोग, रोजमर्रा की जिंदगी जीवन यापन करने वाले लोग अपना पेट भरने के लिए और बच्चों का पेट भरने के लिए मजदूरी, दुकान, नौकरी, व्यापार करते हैं। कुछ लोग चोरी करते हैं, ठगी करते हैं। इसमें चलाक चतुर लोगों का विवरण स्पष्ट रूप से किया गया है। इस प्रकार के लोग अपना पेट भरने के लिए कैसे-कैसे यंत्र और तंत्र का इस्तेमाल करते हैं। इससे संबंधित बातों को कविता के माध्यम से इस कवितावली में वर्णन किया गया है। इसमें लक्ष्मण की मूर्छा और राम के चरित्र का भी थोड़ा बहुत वर्णन कविता के मुख्य से किया गया है।
9 – रामचरितमानस:
दोस्तों रामचरितमानस की रचना गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामायण के आधार पर की है। रामायण ग्रंथ की रचना महर्षि बाल्मीकि जी के द्वारा की गई है। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में प्रभु श्री राम जी का अत्यंत सुंदर वर्णन किया है। इसमें प्रभु राम जी की बाल लीलाओं से लेकर युवावस्था तक सीता स्वयंवर और रावण का वध तक का उल्लेख संक्षिप्त में वर्णन किया गया गया है। रामचरितमानस और रामायण दोनों में ही प्रभु श्री राम जी का जीवन परिचय का वर्णन है। राम चरित्र मानस में तुलसीदास जी ने चौपाइयों का इस्तेमाल करके राम भक्ति को दर्शाया है। जबकि महर्षि वाल्मीकि जी ने उनके संपूर्ण जीवन की व्याख्या की है। इस तरह माने तो राम चरित्र मानस और रामायण में किया गया वर्णन में अंतर है।
10 – गीतावली:
गीतावली तुलसीदास जी के द्वारा रची गई एक ऐसी काव्य कृति रचना है जिसमें रामचरित्र जी का सुंदर वर्णन किया गया है। तुलसीदास जी ने गीतावली को बृज भाषा में संबोधित किया है। इसमें प्रभु राम जी के चरित्र से संबंधित झांकियां, नाट्यकला, घटनाएं ललित बिन्दू, करुणा दशा और भावपूर्ण से चित्रों का संक्षिप्त वर्णन किया गया है। इन सभी क्रियाकलापों को एक सूत्र में पुणे का कार्य किया गया है। कुछ जानकार मानते हैं कि गीतावली में किया गया वर्णन सूरदास के द्वारा लिखे कृष्ण काव्य खंड का मिलता जुलता परिणाम है। लेकिन गीतावली में गोस्वामी तुलसीदास जी ने प्रभु श्री रामचंद्र जी का वर्णन गीत के रूप में समझाने और बताने का सुंदर संक्षिप्त वर्णन किया है।
11 – रामाज्ञ प्रश्न:
दोस्तों रामाज्ञ प्रश्न की रचना तुलसीदास जी ने ज्योतिष के अनुसार फल को देखते हुए की थी। रामाज्ञ प्रश्न रचने का विचार उन्हें रामचरितमानस से आया था। इसमें दोहे का इस्तेमाल किया गया है अर्थात दोहे लिखे गए हैं। रामाज्ञ प्रश्न अच्छे और बुरे विचारों का बोध करवाती है। सात सप्ताकों के सात सर्गों के लिए जब यह पुस्तक खोली जाती है तब जो पहला दोहा मिलता है उसके उपरांत रामकथा का जो प्रसंग आता है। उसके उपरांत अच्छे और बुरे फलों की चर्चा की जाती है। यही सब इस रामाज्ञ प्रश्न रचना में समझाया गया है।
12 – दोहावली:
दोस्तों दोहावली की रचना 1631 ई० में की गई है। इसके रचयिता भी गोस्वामी तुलसीदास जी है जिन्होंने इसमें प्रभु श्री राम जी का वर्णन किया गया है। दोहावली किसी भी एक संग्रह की रचना नहीं है। इसमें राम चरित्र मानस, कवितावली, रामाज्ञा प्रश्न और भी रचनाओं का मिलाजुला सार है जिसमें 573 संग्रह है। कवितावली और दोहावली के दोहों से हमें जीवनयापन को सही ढंग से जीने का वर्णन के रूप में सहायता मिलती है। ऐसे ही दोहों की सहायता से सतसई को तैयार किया गया है। इसलिए कुछ जानकार मानते हैं कि सतसई और दोहावली के काफी दोहे आपस में मिलते जुलते हैं।
तुलसीदासजी के गुरु कौन माने जाते हैं?
दोस्तों गोस्वामी तुलसीदास जी को रामायण रचेता महर्षि बाल्मीकि जी का आदि रूप अवतार भी माना जाता है। इन के गुरु का नाम नरहरिदासजी है। जिनसे इन्होंने साहित्य महाकाव्य की शिक्षा प्राप्त की थी। बाल्यकाल में जब तुलसीदास जी को तुलसी के पौधे के नीचे सोए हुए देख अचंभित हो गए तब उन्होंने इन्हें अपने पास रख लिया औरफिर उन्होंने हीइनका नाम रामबोला से तुलसीदास रख दिया।
निष्कर्ष:
आपको हमने अपने इस आर्टिकल में “तुलसीदास की रचनाएं कौन-कौन सी है?” के बारे में बताने कि कोशिश कि है। उम्मीद करते है कि आपको हमारी ये पोस्ट Tulsidas Ki Rachnaye पसंद आयी होगी और अगर आपको “तुलसीदास की रचनाएं” से संबधित कोई भी सवाल है। तो हमें कमेंट करके जरूर बताये, हम आपके सभी सवालोंके सही-सही जवाब देने कि पूरीकोशिश करेंगे।