गुर्जर प्रतिहार वंश Gurjar Pratihar Vansh- कुछ विद्वानों ने गुर्जर प्रतिहार वंश को विदेशी उत्पत्ति माना है । अलवर लेख में गुर्जर- प्रतिहारानव्य पद मिलता है जिसका अर्थ होता है गुर्जरों की प्रतिहार जाती । इन विद्वानों का मत है कि गुर्जर लोग मध्य एशिया के जाती थे । जो गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद पश्चिमोत्तर मार्ग से भारत आये थे ।
सी.वी वैध इस मत का खंडन किया है और उन्हें शुद्ध आर्यों कि संतान माना है । गुर्जर प्रतिहार वंश का उदय दक्षिण पश्चिम राजपूताना में हुआ, जिसे प्राचीन काल में गुर्जरत्रा कहा जाता था । इस कारण इस राजवंश को गुर्जर प्रतिहार वंश(gurjar pratihar vansh) कहते है ।
प्रतिहार का अर्थ होता है ड्योढ़ीदार होता है । ये अपने को लक्ष्मण का वंशज मानते है । जो भगवन राम के दरवाजे पर प्रतिहार का काम करते थे ।
गुर्जर प्रतिहार वंश के संथापक, gurjar pratihar vansh in hindi
राजशेखर ने महिपाल को रघुकुल तिलक कहा है । आबू पर्वत से 50 मील उत्तर पश्चिम में स्थित भीमनाल में उनका उदय हुआ और धीरे धीरे उन्होंने गुर्जरता, लाट प्रदेश ( गुजरात ) और मालवा पर अधिकार कर लिया ।
गुर्जर प्रतिहार वंश(gurjar pratihar vansh) के शासकों ने आठवीं शताब्दी से लेकर ग्यारहवीं शताब्दी तक राज्य किया । इस वंश का संस्थापक नागभट्ट प्रथम ( 650 ई )था ।
नागभट्ट प्रथम
उसने शक्तिमान मलेछराज कि सेनाओं को हराया और भड़ौंच तक आक्रमण किया । यह मलेछराज संभवतः सिंध प्रदेश का मुस्लिम शासक था । उसके बाद के दो शासक दुर्बल थे ।
नागभट्ट प्रथम के बाद उसका भतीजा ककूस्य राजा बना एवं उसका उत्तराधिकारी उसका छोटा भाई देवराज था । वह वैष्णव धर्म का मानाने वाला था ।
गुर्जर प्रतिहार वंश (gurjar pratihar vansh) का चौथा शासक वत्सराज था ( 775-800 ई ). उसने भाड़ी जाती को हराया साथ ही उसने गौड़ नरेश धर्मपाल को पराजित किया ।
नागभट्ट प्रथम(2)
किन्तु वह स्वयं राष्ट्रकूट शासक ध्रुव से पराजित हो गया । वत्स राज के बाद उसका पुत्र नागभट्ट द्वितीय ( 805-833 ई ) राजा बना । राष्ट्रकूट शासक गोविन्द तृतीय ने उसे बुरी तरह परास्त किया और मालवा उससे छीन लिया ।
गोविन्द तृतीय के मृत्यु के बाद राष्ट्रकूटों में आंतरिक कलह उत्पन्न हो गया, जिससे को काफी राहत मिला और उसने कुछ क्षेत्रों पर अपना कब्ज़ा कर लिया ।
उसने 816 ई में चक्रायुद्ध को कन्नौज से मार भगाया और कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया । इस प्रकार नागभट्ट ने एक शक्तिशाली गुर्जर प्रतिहार(gurjar pratihar vansh) साम्राज्य स्थापित किया ।
वत्सराज एवं नागभट्ट ने एक प्रांतीय राज्य को प्रथम श्रेणी के सैनिक तथा राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित किया । तथा कुछ समय बाद राजा भोज ने अपने शत्रु पाल और राष्ट्रकूट वंशों के घोर विरोध के बाद भी सत्ता को बनाये रखा ।
उसके बाद उसका पुत्र रामभद्र गद्दी पर आया . वह एक दुर्बल शासक था और उसके समय में प्रांतीय शासकों ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया ।
मिहिरभोज
रामभद्र के पुत्र मिहिरभोज ने पुनः एक बार गुर्जर प्रतिहार शक्ति को प्रतिष्ठित किया । मिहरभोज इस वंश का सबसे शक्तिशाली और पराक्रमी राजा था । मिहिरभोज अरबों का विरोधी और इस्लाम का सबसे बड़ा शत्रु था ।
भोज ने अपने राजा बने के बाद अपनी साम्राज्य शक्ति को संगठित किया तथा साम्राज्य विस्तार पर ध्यान दिया ।
भोज के समकालीन शासकों में पाल शासक देवपाल था जो कि भोज कि सामान ही शक्तिशाली था । अतः इस दोनों कि बीच युद्ध हुआ और प्रथम में देवपाल विजयी हुआ और दूसरे युद्ध में मिहिरभोज ने युद्ध जीता ।
भोज कि दक्षिण पश्चिम अभियानों कि कारण भोज की राष्ट्रकूट शासक से टकराव हुआ और राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष कि सामंत ध्रव ने गुर्जर प्रतिहार वंश (gurjar pratihar vansh)की अत्यंत शक्तिशाली एवं सामंतों को आसानी से भागने पर विवश कर दिया था ।
अरब यात्री सुलेमान के अनुसार वह अरबों का शत्रु था । भारत के राजाओं में उससे बढ़कर इस्लाम धर्म का कोई शत्रु नहीं है । उसका राज्य जिह्वा के आकार का है । वह धन, वैभव से सम्पन्न था । उसकी सेना में ऊंट और अश्व थे ।
वह मुसलमानों के सामने एक दीवार की तरह खड़ा रहा तथा इस कार्य को उसने अपने उत्तराधिकारियों के लिए एक धार्मिक उत्तरद्यित्व के रूप में छोड़ा ।
महेन्द्रपाल
भोज के पुत्र महेंद्रपाल प्रथम ने साम्राज्य को सुरक्षित बनाये रखा तथा अपने शासन काल में मगध और उत्तरी बंगाल की विजयी की और सौराष्ट्र में उसके अधीन सामंत का शासन था ।
महेन्द्रपाल प्रथम के बाद उसका पुत्र के बाद उसका पुत्र भोज द्वितीय राजा बना किन्तु हर्ष देव चंदेल की सहायता से उसके दूसरे पुत्र महिपाल ने( 912-944 ई) अपने बड़े भाई से राज्य छीन लिया ।
916 ई में राष्ट्रकूट शासक इंद्र तृतीय ने एक बड़ी सेना लेकर उस पर आक्रमण कर दिया और कन्नौज को पूरी तरह से नष्ट कर दिया । किन्तु महिपाल ने जल्द ही अपनी स्थिति ठीक कर ली और कन्नौज को वापस ले लिया । साथ में दोआब, बनारस, ग्वालियर, काठियावाड़ पर भी कब्ज़ा कर लिया ।
उसके पुत्र महिपाल (2) ने साम्राज्य को सुरक्षित रखा । 948 में देवपाल राजा बना । उसकी मृत्यु के बाद चंदेल वंश के उदय ने गुर्जर प्रतिहार वंश की जड़ों को हिला दिया ।
गुर्जर प्रतिहार(gurjar pratihar vansh) सात स्वतंत्र राज्यों में बंट गया ।
- आनिहलवाड़ के चालुक्य
- चंदेल
- ग्वालियर के कच्छपघात
- डाहल के चेदि
- मालवा के परमार
- दक्षिण राजस्थान के गुहिल
- शाकम्भरी के चाहमान
1018-19 में कन्नौज पर महमूद गजनबी ने आक्रमण किया उस समय राज्यपाल राजा था । वह इससे युद्ध नहीं किया और भाग निकला । इस कायरता से क्रुद्ध होकर चंदेल राजा गण्ड ने उसे दण्डित करने के लिए अपने युवराज विद्याधर के नेतृत्व में एक सेना भेजी और राज्यपाल को मारकर उसकी गद्दी पर उसके पुत्र त्रिलोचन पाल को बिठाया ।
1019 में महमूद ने पुनः कन्नौज पर आक्रमण किया और त्रिलोचन पाल बुरी तरह से पराजित हुआ । त्रिलोचन पाल 1027 ई तक जीवित रहा । यशपाल गुर्जर प्रतिहार वंश(gurjar pratihar vansh) का अंतिम शासक था ।
गुर्जर प्रतिहार वंश(gurjar pratihar vansh) के बाद 1090 ई में कन्नौज पर गहड़वालों ने अधिकार कर लिया ।