वेद क्या है
वेद को वैदिक साहित्य भी कहा जाता है वेदों को अपौरुषेय कहा जाता है अर्थात उसकी रचना देवताओं ने की है। वेदों को श्रुति भी कहते हैं। क्योंकि श्रवण परंपरा द्वारा ज्ञान को सुरक्षित रखा जाता था आरंभिक 3 वेदों को वेदत्रीय (ऋग्वेद सामवेद यजुर्वेद) कहा जाता है।
वेद के प्रकार
ऋग्वेद
यह आर्यों का प्राचीनतम ग्रंथ है इसमें देवताओं के सम्मान में लिखी गई प्रार्थनाएं हैं और इसके लिए हेतु नामक पुरोहित मौजूद था । ऋग्वेद में 10 मंडल शामिल है तीसरे मंडल के रचनाकार विश्वामित्र थे। जिन्हें गयात्री मंत्र लिखने का श्रेय दिया जाता है यह मंत्र तीसरे मंडल में सवित्र को समर्पित है।
ऋग्वेद के सातवें मंडल में दसराज युद्ध का वर्णन मिलता है जो रावी नदी के किनारे हुआ था। नवा मंडल सोम देवता को समर्पित है दसवें मंडल के पुरुष सूक्त में पहली बार चारों वर्णों का उल्लेख मिलता है ।
ऋग्वेद में कुछ मंत्रों की रचना महिलाओं ने भी कि जैसे अपाला, घोषा, लोपामुद्रा आदि।
सामवेद
इसमें यज्ञ के अवसर पर गाए जाने वाले मंत्रों का संग्रह है इसका गान करने वाला पुरोहित उदगाता कहलाता था। सामवेद को संगीत की प्राचीनतम पुस्तक माना जाता है।
यजुर्वेद
यजुर्वेद का अर्थ है यज्ञ। इसमें यज्ञ विधियों का वर्णन मिलता है यह कर्मकांड प्रधान भी माना जाता है इसके पाठ करने वाला पुरोहित अर्ध्वर्यू कहलाता है। यह पाठ करने के साथ-साथ यज्ञ में आहुति भी देता है। यजुर्वेद गद्य और पद में है। शतपथ ब्राह्मण शुक्ल यजुर्वेद से संबंधित है।
अथर्ववेद
इसकी अर्चना अठर्वा ऋषि ने किया था। इनके साथ ऋषि अंगी रथ को भी लिखने का श्रेय दिया जाता है। इसलिए अर्थवेद में तंत्र मंत्र जादू टोने का समावेश है। यह समाज की निचली संस्कृति से जुड़ा हुआ माना जाता है यही वजह है कि उसे वह सम्मान प्राप्त नहीं था जो अन्य तीन वेदों को प्राप्त था अथर्ववेद को ब्रह्मा वेद भी कहते हैं।
इसमें काशी राज्य का प्रथम उल्लेख मिलता है अथर्ववेद से जुड़े हुए मुंडकोशनिषद में सत्यमेव जयते का उल्लेख मिलता है इसी उप्निष्ट में कहा गया है कि यज्ञ कर्मकांड टूटे हुए नाव के समान है। इनसे भवसागर पार नहीं किया जा सकता ।