झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने 1857 की क्रांति में अंग्रेज़ो के साथ बड़ा भयंकर युद्ध किया और पूरे देश में भारतीय नारी की वीरता को दिखाया । पर पूर्ण सहयोग न मिलने के कारण यह आंदोलन असफल रहा, पर इस युद्ध में भारतीय लोगो ने ऐसा पराक्रम दिखाया की ब्रिटिश सत्ता को हिला कर रख दिया, जिसमें से झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का बहुत बड़ा योगदान रहा ।
रानी लक्ष्मीबाई का जीवन परिचय
सातारा के किनारे वाई नामक का एक ग्राम है । उस ग्राम में कृष्णराव तांबे नाम के एक सद्गुण संपन्न ब्राह्मण रहते थे । पेशवा के समय मे वे एक उच्च पदधिकारी थे । उनका बलवंत नाम का एक शूरवीर पुत्र थे । उसके मोरोपांत और सदाशिव नाम के दो पुत्र थे । मोरोपंत पर चिमाजी आपासाहब की बड़ी कृपा थी ।
जिस समय महाराष्ट्र के अंतिम पेशवा बाजीराव ने अंग्रेजों से 8 लाख की पेंशन लेना स्वीकार किया । उस समय अंग्रेज़ो ने चिमाजी आपासाहब को पेशवा बनाना चाहा । पर वे नाममात्र के पेशवा बनने से इंकार कर दिया था । और काशी में रहने के लिए चले गए और मोरोपंत भी इनके साथ चले गए ।
मोरोपंत की पत्नी का नाम भागीरथी बाई था । यह स्त्री बड़ी सुशील, चतुर, रूपवान और कई गुणों से संपन्न थी । पति और पत्नी में बड़ा प्रेम था । संसार में प्रेम से बढ़कर और कोई पवित्र वस्तु नहीं है।
मोरोपंत के घर में एक कन्या का जन्म हुआ । काशी के एक प्रसिद्ध ज्योतषि ने उनकी पुत्री के बारे में भविष्यवाणी की थी की यह बालिका राजलक्ष्मी से अलंकृत होकर अत्यंत शौर्यशाली स्त्री होगी । माता पिता ने इस कन्या का नाम मनुबाई रखा।
लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी में 19 नवम्बर 1828 को हुआ था। बचपन का नाम मणिकर्णिका था
चिमाजी आपासाहब की मृतु के बाद मोरोपंत का काशी मे कोई सहारा न था । परंतु चिमाजी आपासाहब के भाई बाजीराव पेशवा ने, जो उस समय ब्रहमव्रत में रहते थे, इन सबको अपने पास बुला लिया । यहाँ आकार वे अपना समय सुख पूर्वक बिताने लगे ।
कुछ वर्ष के बाद उनकी पत्नी का देहांत हो गया । उस समय मनुबाई 3-4 वर्ष की थी । पत्नी की मृत्यु के बाद वो मनु का लालन पालन स्वयं करने लगे ।
मनुबाई बाल्यावस्था से ही बहुत सुंदर थी । मनु बाई को पेशवा छबीली कहकर पुकारते थे । बाजीराव के दत्तक पुत्र नानासाहब और राव सहाब भी उस समय बालक थे, ये दोनों मनु के साथ कई प्रकार के खेल खेलते थे ।
मनुबाई(रानी लक्ष्मीबाई) का विवाह
मनुबाई का विवाह 1842 ई में झाँसी के महाराज श्रीमान गंगाधर राव के साथ बड़ी धूम धाम के साथ हुआ था । यहाँ मनुबाई का नाम लक्ष्मी बाई रखा गया । मोरोपंत को झाँसी दरबार में एक सरदार के पद पर नियुक्त किया गया ।