जैन धर्म के संस्थापक | jain dharm ke sansthapak
जैन परम्परा में महावीर को जैन धर्म का संस्थापक नहीं माना जाता है। जैनों के अनुसार ,महावीर के पूर्व 23 तीर्थकरों ने समय-समय पर जैन धर्म का प्रचार प्रसार किया था। तीर्थकर का अर्थ है संसार रूपी सागर से औरों को मोक्ष के लिए मार्ग बताने वाला।
जैन परंपरा के अनुसार ऋषभदेव(आदिनाथ) प्रथम तीर्थकर थे और महावीर चौबीसवें। महावीर के पहले पाशर्वनाथ 23 वे तीर्थकर थे। महावीर के पहले सभी तीर्थकरों को ऐतिहासिक व्यक्ति मानने के लिए कोई प्रमाण नहीं था। किंतु अब यह सिद्ध हो चुका है की पाशर्वनाथ एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे।
पाशर्वनाथ आठवीं शताब्दी ई. पूर्व में थे और कशी के राजा अश्वसेन के पुत्र थे। इन्होंने चार प्रमुख सिद्धांतों की शिक्षा दी – अहिंसा,सत्य अस्तेय (चोरी न करना ) और अपरिग्रह ( वस्तुओं का संग्रह न करना ) है। जैनों का यह मानना कि पाशर्वनाथ के इन्हीं चार सिद्धान्तों में महावीर ने अपना ब्रह्मचर्य का सिद्धांत दिया।