परमार वंश का संस्थापक, parmar vansh ka sansthapak
दसवीं शदी के शुरुआत मे उपेंद्र अथवा कृष्णराज ने परमार वंश की स्थापना की, अथवा कृष्णराज को ही परमार वंश का संस्थापक माना जाता है . परमार शासक काला और साहित्य के संरक्षक थे । परमार वंश के राजाओं मे सातवाँ शासक मुंज साहित्यकारों के प्रश्रयदाता के रूप मे प्रसिद्ध है ।
वह योद्धा भी था और उसने हूणों तथा चेदी राजाओं के साथ युद्ध किए । चालुक्य शासक तैल द्वितीय के राज्य पर उसने छः बार आक्रमण किया, किन्तु सातवी बार वह बंदी बना लिया गया और 995 ई मे बंदीग्रह से भागने के कारण पकड़े जाने पर मारा गया ।
राजा भोज
सिंधुराज के पश्चात उसका पुत्र भोज राजगद्दी पर बैठा, जिसकी गिनती भारत के विख्यात और लोकप्रिय परमार शासकों मे की जाती है । परमार वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक राजा भोज थे। उसने 40 वर्षों तक राज्य किया
भोज के शासन काल के कई अभिलेख व साहित्यक साक्ष्य प्राप्त होते है और गुजरात के जैन ग्रन्थों, सुभाषितों, अलबरूनी व अबुलफजल के लेंखों मे भी भोज का वर्णन मिलता है ।
परमार वंश की सैन्य शक्ति
भोज की सैन्य उपलब्धियां का वर्णन उदयपुर शिलालेख मिलता है इस प्रशस्ति के अनुसार भोज ने सर्वप्रथम चालूक्यों से युद्ध किया। इसके बाद भोज ने कोंकड़ प्रदेश पर भी संभवतः विजय प्राप्त किया।
भोज ने कल्याणी के शासक जयसिंह पर आक्रमण कर उसे परास्त कर दिया पर कुछ वर्षों के बाद जयसिंह के पुत्र ने सोमेशवर प्रथम ने उस समय आक्रमण किया जब भोज की शक्ति कमजोर थी । अतः घेरे जाने पर भोज को भागना पड़ा ।
उदयपुर प्रशस्ति से यह ज्ञात होता है की भोज ने लाट के शासक कीर्तिरज को युद्ध मे हराया इसके पश्चात सोमवंशी राजा इन्द्र्रथ को परास्त किया।
राजा भोज ने मुसलमानों को भी पराजित किया साथ ही कल्चुरी शासक गंगीयदेव, चहमान शासक वीर्यराम तथा गुजरात के चालुक्य नरेश भीम को पराजीत किया ।परंतु राज भीम के राज्य को केवल लूटने मे समर्थ हुआ एवं पूर्ण सुरक्षा के बाद भी युद्ध के समय 1055 ई. मे मृत्यु हो गया ।
भोज एक विद्वान शासक था । राजा भोज को सैनिक अभियान के अलावा कला एवं साहित्य के क्षेत्र मे किए गए कार्यों के लिए याद किया जाता है राजा भोज ने ज्योतिष, काव्यशास्त्र और वास्तुशास्त्र कई पुस्तकें लिंखी, जिनमें श्रींगारमंजरी तथा कूर्म शतक ग्रंथ है ।
भोज ने धारा को विद्या व कला का प्रमुख केंद्र बनाया वहाँ पर उसने सरस्वतीकंठाभरण विद्यालय की स्थापना की जो अब एक मस्जिद के रूप मे मिलता है ।
राजा भोज ने अनेक मंदिरों का निर्माण भी करवाया। भोपाल के दक्षिण पूर्व मे उसने भोजपुर नामक नगर स्थापना किया तथा भोजपुर नामक एक झील भी बनवाया जो 250 वर्ग मील मे थी । यह झील चारों ओर कई पहाड़ियों के जल निकास को रोककर बनाया गया था ।