1857 की क्रांति की शुरुआत,1857 ki kranti in hindi
1857 की क्रांति तक अंग्रेजों ने कुछ हिंस्सों को छोड़कर पूरे देश को अपना गुलाम बना लिया था और भारत में अंग्रेजों का अत्याचार बढ़ता जा रहा था । किन्तु भारत वासियों के मन में उनके प्रति एक भयानक ज्वालामुखी धधक रहा था।
भारत में अंग्रेज़ी राज्य की स्थापना छल, कपट, नीचता से हुआ था । एक सभ्य सभ्यता को अंग्रेजों ने छल करके अपना राज्य स्थापित किया था । 1857 की क्रांति तक भारत में एक विशाल साम्राज्य स्थापित हो गया था ।
अंग्रेजों की नीतियों एवं कार्यों से भारतियों में असंतोष और घृणा की भावना उत्पन्न हो गया था । जनता के अंदर उनके प्रति बदले की भावना पनपने लगी थी ।
भारतीय जनता न तो अंग्रेजी शासन से संतुष्ट थी और न ही अंग्रेजी राज्य को स्वीकार किया था । क्योंकि उन्होंने अपने ही घर में अपना अपमान और स्वतंत्रता का अपहरण होते हुए देख रहे थे ।
अंग्रेजों के लिए एक विशाल साम्राज्य और सेना प्राप्त करना तो आसान था पर पर उसका साम्राज्य का उचित संगठन करना एक मुश्किल काम था । अतः समय समय पर ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध विद्रोह होने लगे थे ।
- 10 जुलाई 1806 को वेलोर में स्थित कंपनी की सेना के देसी सैनिकों ने विद्रोह किया था ।
- 30 अक्टूबर 1824 को कलकत्ता के पास बैरकपुर की छावनी पर विद्रोह हुआ था ।
- 1831-33 में कील का विद्रोह हुआ ।
- 1848 में कांगड़ा जसवार और दातापुर के राज्यों में विद्रोह हुआ था ।
- 1855-56 में संथाल में विद्रोह हुआ था ।
अंग्रेजों ने अपनी सैनिक शक्ति के बल पर इन सारे विद्रोह का दमन कर दिया । मगर इन विद्रोह के कारण 1857 की क्रांति की पृष्ट भूमि तैयार कर दी ।
कारण
- सैनिक विद्रोह- अंग्रेजों के प्रति भारतियों सैनिकों के मन में तीव्र असंतोष था और जोश में आकर अंग्रेजी सत्ता को नष्ट करने के लिए अंग्रेज सैनिक अधिकारीयों के विरुद्ध हथियार उठा लिए थे ।
- राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक और सामाजिक कारण थे जिससे अंग्रेजों की नीतियों के कारण भारत में प्रचलित परम्परा और संस्था ख़त्म हो रहे थे ।
राजनीतिक कारण
अधिकांश राजनीतिक कारण लार्ड डलहौजी की साम्राज्यवादी नीति के कारण हुए थे ।
- डलहौजी के गोद निषेध सिद्धांत के कारण भारतीय जनता निराश और क्रोधित हो गए थे । इस सिद्धांत के कारण कई भारतियों नरेशों और राजाओं को समाप्त कर दिया गया ।
- राज्यों पर कुशासन का आरोप लगाकर अंग्रेजी सत्ता में कर लेना ।
- अवध अंग्रेजों का घनिष्ट मित्र राज्य था, किन्तु 13 फ़रवरी 1856 को अवध को धोखे से कब्ज़ा कर लिया । इससे भारतीय राज्यों में असंतोष की भावना उत्पन्न हो गई. और जो राजा अंग्रेजो के पक्ष में थे उन्हें भी अपने अस्तित्व के प्रति संदेह होने लगा.
- राजवंशों के समाप्त होने के कारण उन पर आश्रित सामंतों, सैनिकों, शिल्पियों तथा इनके अलावा अन्य कई वर्गों पर भी पड़ा ।
- कर्नाटक और तंजौर के शासकों की उपाधियाँ और पेंशन बंद कर दिया ।
- मुंगल सम्राट के साथ दुर्व्यवहार, मुंगल सम्राट बहादुरशाह(2) दयालु तथा भावुक वयक्ति था। अंग्रेजों ने उसकी प्रतिष्ठा पर प्रहार करना प्रारम्भ कर दिया था । उन्होंने आठ पुत्रो में से सबसे निक्कमे पुत्र मिर्जा कोबास को युवराज घोषित कर दिया था । जिससे संधि किया, संधि के अनुसार वह दिल्ली का लाल किला खाली कर देगा, स्वयं को बादशाह नहीं कहेगा. एक लाख के स्थान पर 15000 रूपए का पेंशन स्वीकार करेगा।
- किसी ज्योत्षी ने भविष्वाणी की कि भारत में अंग्रेजों का राज्य 100 वर्षों बाद समाप्त हो जायेगा । 1757 में प्लासी के युद्ध से अंग्रेजी राज्य स्थापित हुआ और 1857 में 100 वर्ष पुरे हो चुके थे । इससे 1857 की क्रांति का उचित कारण तैयार हो गया ।
प्रशासनिक कारण
- अंग्रेजों ने प्रशासन में भेदभावपूर्ण नीति अपनायी। लार्ड कार्नवालिस ने हमेशा भारतियों को अविश्वास की दृष्टि से देखा और उसने भारतियों को उच्च पदों से वंचित कर दिया ।
- न्यायिक क्षेत्र में भी अंग्रेज भारतियों से श्रेष्ट समझे जाते थे तथा भारतीयों जजों की अदालतों में उनके विरुद्ध कोई मुकदमा दायर नहीं हो सकता था ।
- भू राजस्व प्रणाली को नियमित करने के नाम पर जमींदारों के पट्टों के की छानबीन करवाई गई और कई लोगों की जमीनों को लूट लिया गया । बैंटिक ने माफ़ी की भूमि तक छीन लिया ।
- कुलीन वर्ग को अपनी संपत्ति से हाँथ धोना पड़ा, जिसके कारण यह वर्ग क्रोधित हो गया ।
- किसानों की दशा सुधारने के नाम पर स्थायी बंदोबस्त, रैय्यतवाड़ी प्रणाली लागू कर दिया गया जिससे किसानों से पहले की अपेक्षा दुगुना या इससे अधिक लगान लिया जाने लगा था ।
- भारतीय कर्मचारियों के साथ उनका व्यवहार कुत्तों से भी बत्तर था । अंग्रेजों को भारतियों से मिलने तक नहीं देते थे । अंग्रेजों की इस भेद भाव की नीति के कारण भारतीय क्रोधित हो गए और उनका यह क्रोध 1857 की क्रांति के रूप में बदल गया ।
सामाजिक कारण
अंग्रेजों के द्वारा भारतीय समाज की बुराइयों को दूर करने के प्रयास का भारतीय सामाजिक जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा ।
- पाश्चात्य शिक्षा से भारतियों का जीवन अस्त व्यस्त हो गया । भारतीय सामाजिक जीवन की विशेषता ही समाप्त हो गई . भारत में प्राचीन काल से लोगों में आभार प्रदर्शन, कर्तव्य तथा पारस्परिक सहयोग की भावना थी । किन्तु पाश्चात्य शिक्षा ने उसे नष्ट का कर दिया ।
- कुलीन वर्ग की सम्पत्ति और जागीरें लूटकर उनके सामाजिक जीवन पर प्रहार किया गया ।
- सती प्रथा, बाल हत्या, नर बलि को बंद करने का प्रयत्न लिया गया ।
- डलहौजी ने विधवा विवाह को क़ानूनी आधार प्रदान कर दिया ।
- अंग्रेजों द्वारा संचालित होटलों में लिखा हुआ होता था ” कुत्तों और भारतियों के लिए प्रवेश वर्जित”।
- अंग्रेजों ने सुधारों के नाम पर अपनी सभ्यता और संस्कृति का प्रचार कर रहे थे । वे अंग्रेजी चिकित्सा को प्रोत्साहन कर रहे थे जो भारतीय चिकित्सा विज्ञान के पूर्णतः विरुद्ध था ।
- स्कूल, अस्पताल, दफ्तर और सेना पाश्चात्य सभ्यता व संस्कृति के प्रचार के केंद्र थे ।
धार्मिक कारण
भारत में ईसाई धर्म का प्रचार सर्वप्रथम पुर्तगालियों ने किया था । उसके बाद अंग्रेजो ने ईसाई धर्म का प्रचार प्रसार किया ।
1813 में चार्टर एक्ट द्वारा ब्रिटिश सरकार ने ईसाई मिशनरियों को भारत में धर्म प्रचार की स्वतंत्रता प्रदान कर दी थी ।
मेगल्स ने ब्रिटिश संसद में कहा था की परमात्मा ने भारत का विस्तृत साम्राज्य ब्रिटेन को प्रदान किया है ताकि ईसाई धर्म को पूरे भारत में फैलाया जा सके । प्रत्येक वयक्ति को अविलम्ब ही समस्त भारतियों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने का महान कार्य को करने में अपनी पूरी शक्ति लगा देना चाहिए । अंग्रेजों ने इस नीति के तहत भारत में ईसाई प्रचारकों को सभी प्रकार की सुविधा प्रदान की ।
ईसाई धर्म प्रचारक बड़े उदंडी थे । वे खुले रूप से हिन्दू व इस्लाम के निंदा करते थे । हिन्दुओं के देवी देवताओं को गाली देते थे ।
बेरोजगारों, अकाल पीड़ितों, कैदियों, विधवाओं तथा अनाथ बच्चों को तो बलपूर्वक ईसाई बना लिया जाता था ।
वैटिंक ने यह नियम बनाया था की धर्म परिवर्तन करने पर पैतृक सम्पति से वंचित नहीं किया जायेगा । इससे लोग स्वेच्छा से ईसाई बनने लगे थे ।
हिन्दू धर्म के अनुसार परलोक में शांति प्राप्त करने हेतु, स्वयं के दाह संस्कार हेतु तथा वंश को चलाये रखने हेतु निसंतान व्यक्ति के लिए पुत्र गोद लेना अनिवार्य था । पर डलहौजी ने इस पर रोक लगा दिया था । इस कारण लोग क्रोधित हो गए थे ।
आर्थिक कारण
अंग्रेजों ने जितना भारतियों का राजनीतिक शोषण किया उससे भी बढ़कर आर्थिक शोषण किया । 1813 के चार्टर एक्ट से ब्रिटेन के निजी व्यापारियों को भारत में व्यापार करने की अनुमति प्राप्त हो गया जिसके कारण आर्थिक शोषण और तेज हो गया ।
मुक्त व्यापार नीति से इंग्लैण्ड का निर्मित माल अधिकाधिक मात्रा में भारत के बाजारों में बिकने लगा । जिसके कारण भारतीय उद्योग धंधे नष्ट हो गए । जिसके कारण भारतियों में गरीबी बढ़ने लगा । भारत का अत्याधिक धन इंग्लैंड जाने लगा ।
उदयोग और व्यापार का विनाश होने से अनेक कारीगर बेकार हो गए और राज्यों का अंग्रेजी राज्य में विलय कर देने से हजारों सैनिक बेकार हो गए । जिससे लाखों लोगों का रोजगार चला गया ।
इन बेरोजगारों ने घूम घूम कर अंग्रेजों के विरुद्ध प्रचार किया तथा विद्रोह के लिए प्रोत्साहित किया ।
सैनिक कारण
अंग्रेजों ने भारतीय सेना की सहायता से भारत में अपनी सर्वोच्च शक्ति स्थापित किये । कंपनी ने बड़ी संख्या में भारतीय सैनिकों को अपनी सेवा में रख लिया ।
वेलेजली की सहायक प्रथा के फलस्वरूप कंपनी की सेना में भारतियों की बहुत तेजी से वृद्धि हुआ । 1856 में डलहौजी के जाने के समय कंपनी की सेना में 2,38,000 देशी और 45,322 अंग्रेज सैनिक थे । भारतीय सैनिकों की विशालता ने उन्हें निर्भीक एवं साहसी बना दिया था ।
सेना के वेतन, भत्ते एवं पदोन्नति के संबंध में भारतियों से भेद भाव किया जाता था । भारतीय सैनिक का वेतन सात या आठ रूपए होता था । सेना में एक भारतीय सूबेदार का वेतन 35 रूपए मासिक था जबकि अंग्रेज सूबेदार का 195 रूपए मासिक था ।
अंग्रेजों की इन नीतियों के कारण 1806 से 1856 के बीच भारतीय सैनिकों ने अनेक विद्रोह किये । किन्तु इन विद्रोहों का निर्ममतापूर्वक दमन कर दिया गया था ।
विद्रोही सैनिक को भीषण यातनाएं दी गई और यंहा तक की भारतीय सैनिकों को गोली से उड़ा दिया गया । अंग्रेज अधिकारी भारतीय सैनिक को पशु तुल्य समझते थे ।
कंपनी की सेना में अधिकांश ब्राह्मण, राजपूत, जाट और पठान थे । वे पढ़े, लिखे नहीं होते थे धर्म के नाम पर अपने अधिकारी के आदेशों की अवहेलना करना साधारण बात था ।
अंग्रेजों ने सेना में पाश्चात्य नियम लागू करते हुए सैनिकों को माला पहनने व तिलक लगाने की मनाही थी । मुसलान सैनिक दाढ़ी नहीं रख सकते थे ।
ये सब नियम भारतियों के के धर्म व परम्परा के विरुद्ध थे । भारतीय सैनिक विदेश जाना धर्म के विरूद्ध मानते थे और भारतीय सैनिकों ने विदेश जाने से इंकार कर दिया था ।
इस पर लार्ड केनिंग के सामान्य सेना में भर्ती अधिनियम पारित किया, जिसके कारण सैनिकों को सेवा के लिए कहीं भी भेजा जा सकता था । उन्हें यह लिखित में देना पड़ता था ।
तात्कालिक कारण
नायक
1857 की क्रांति के समय चर्बी वाले कारतूसों ने चिंगारी का काम किया । ब्रिटेन में एक एनफील्ड राइफल का अविष्कार हुआ । इस रायफल में गाय और सूअर की चर्बी का प्रयोग होता था । इस कारतूस को रायफल में डालने से पूर्व उसकी टोपी को मुँह से काटना पड़ता था ।
1 जनवरी 1857 को इस रायफल का प्रयोग भारत में प्रारम्भ किया गया था । इसके बाद दमदम शस्त्रागार में एक दिन एक खलासी ने एक ब्राह्मण सैनिक के लोटे से पानी पीना चाहा , लेकिन ब्राह्मण ने धर्म के विरुद्ध मानकर उसे इंकार कर दिया ।
इस पर उस खलासी ने व्यंग किया की उसका धर्म तो नए कारतूसों से नष्ट हो जायेगा क्योकि उस पर गाय और सूअर की चर्बी लगी हुई है ।
जिसके कारण सत्य सामने आ गया और सैनिक भड़क उठे । बैरकपुर में बंगाल सेना की कुछ कम्पनियाँ के फरवरी 1857 में बरहामपुर पहुंची और 26 फ़रवरी 1857 को बरहामपुर के सैनिकों ने इन कारतूसों का प्रयोग करने से इंकार कर दिया ।
29 मार्च 1857 को मंगल पाण्डे सैनिक ने विद्रोह कर दिया तथा अंग्रेज अधिकारी पर गोली चला दी । इससे एक अंग्रेज अधिकारी मारा गया और दो घायल हो गए । कुछ दिनों के बाद मंगल पाण्डे को पकड़कर फांसी दे दिया गया।
इसके बाद चर्बी वाले कारतूसों की खबर मेरठ तक पहुंच गई । 10 मई 1857 को शाम 5 बजे मेरठ की पैदल सेना ने विद्रोह कर दिया और बाद में यह विद्रोह घुड़सवारों की टुकड़ी में फ़ैल गया । कारमाइकेल को वहाँ से जान बचाकर भागना पड़ा ।
विद्रोही जेल में घुसे और कैदियों को मुक्त किया, बंदी सैनिकों की बेड़ियाँ काटकर उन्हें अस्त्र-शस्त्र प्रदान किये और जंहा अंग्रेज मिले वंहा मौत के घाट उतार दिया गया । उसके बाद सैनिक दिल्ली की ओर चल पड़े ।
1857 की क्रांति की घटनाएँ
- 11 मई 1857 को मेरठ के विद्रोही सैनिक दिल्ली पहुंचे । यंहा पर उन्होंने अंग्रेज अधिकारीयों को मार कर दिल्ली पर अधिकार कर लिया । क्रांतिकारियों ने मंगल सम्राट बहादुरशाह से क्रांति का नेतृत्व करने को कहा और वो मान गए।
- नाना साहब ने कानपूर पर अपना अधिकार कर लिया और अपने आप को वहाँ का पेशवा घोषित कर दिया ।
- बुंदेलखंड में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने तथा मध्य भारत में तात्या टोपे ने क्रांतिकारियों का नेतृत्व किया।
- बिहार में जगदीशपुर के जमींदार कुंवर सिंह ने क्रांतिकारियों का नेतृत्व किया ।
- राजस्थान में 28 मई 1857 को नसीराबाद की सैनिक छावनी तथा 3 जून 1857 को रात 11 बजे नीमच के सैनिकों ने विद्रोह कर छावनी में आग लगा दिया ।
- 21 अगस्त 1857 को जोधपुर में एक सैनिक टुकड़ी ने विद्रोह कर दिया । इनके साथ मेवाड़ और मारवाड़ के कुछ जागीरदार और सेना इनके साथ मिल गए ।
- पंजाब, बंगाल और दक्षिण भारत के अधिकांश क्षेत्र में कोई विद्रोह नहीं हुआ । जिससे 1857 की क्रांति सफल नहीं हो सका ।