हल्दीघाटी का युद्ध | haldighati ka yudh

हल्दीघाटी का युद्ध

हल्दीघाटी का युद्ध महाराणा प्रताप और अकबर के बीच  19 जून 1576 को लड़ा गया था. शोलापुर का युद्ध को जीतकर राजा मानसिंह वापस लौट रहा था । रास्ते में प्रताप का अतिथि बनने का उसके मन में विचार पैदा हुआ| उसने महाराणा प्रताप के पास इसका समाचार भेजा। राणा प्रताप कमलमीर में रहते थे।

हल्दीघाटी-का-युद्ध
हल्दीघाटी का युद्ध

प्रताप ने उदयसागर पहुंचकर उससे मिलने का प्रबंध किया और मानसिंह के भोजन की तैयारी वहीं पर की गई तैयार होने पर प्रताप पुत्र राजकुमार अमर सिंह ने मानसिंह का स्वागत कर भोजन के लिए बुलाया उसने आकर भोजन स्थल पर प्रताप को ना देखा तो उसने अमर सिंह से पूछा  कुमार ने उत्तर देते हुए कहा कि सिर में पीड़ा के कारण पिता जी नहीं आ सकते।

ADVERTISEMENT

यह सुनकर राजा मानसिंह क्रोधित हो उठा और कहा उस पीड़ा को मै समझता हूँ। अब उस शूल की  कोई औषधि नहीं हो सकता. प्रताप ने भीतर से मानसिंह की इस बात को सुनकर आकर आवेश पूर्ण शब्दों में कहा मैं उस राजपूत के साथ कभी भोजन नहीं कर सकता जो अपनी बहन-बेटियों का विवाह एक तुर्क के साथ कर सकता है।

राणा के इस बात को सुनकर मानसिंह ने अपना अपमान अनुभव किया और भोजन नहीं किया। भोजन के स्थान से उठते हुए मानसिंह ने प्रताप सिंह की तरफ देख कर कहा आप के सम्मान की रक्षा करने के लिए ही मुझे अपनी बहन- बेटियां  तुर्क को देनी पड़ी है। अगर आप इसका लाभ नहीं उठाना चाहते तो इसका अर्थ यह है कि आप स्वयं खतरों को अपने ऊपर ला रहे हैं .

यह मेवाड़ का राज्य अब आपका होकर नहीं रहेगा यह कहकर वह अपने घोड़े पर बैठने लगा और उस समय प्रताप  की तरफ देखकर उसने कहा अगर मैंने आपसे इस अपमान का बदला रण क्षेत्र में ना लिया तो मेरा नाम मानसिंह नहीं है।

ADVERTISEMENT

उसकी इस बात का उत्तर देते हुए महाराणा प्रताप ने कहा-” मैं हर्ष के साथ उसके लिए तैयार हूं”। जिस समय इस प्रकार की बातें राणा के साथ मानसिंह की हो रही थी। उस समय उस स्थान पर खड़े किसी राजपूत सरदार ने कुछ अपमान पूर्ण शब्दों में मानसिंह से कहा उस समय अपने फूफा अकबर को भी साथ में लेते आना उसे लाना भूल ना जाना।

अपमान के साथ मानसिंह ने इन शब्दों को सुना और अपने घोड़े पर बैठकर तेजी के साथ चला गया। जो स्थान मानसिंह के भोजन के लिए तैयार किया गया था। उसके चले जाने के बाद उसे खोद डाला गया और उस पर गंगाजल छिड़क दिया गया।

जो बर्तन मानसिंह को खाने और पीने के लिए दिए गए थे। उनको अपवित्र समझ कर नष्ट कर दिया गया जिन लोगों ने मानसिंह को अपनी आँखों से देखा था। उन्होंने उसके जाने के बाद स्नान किया और अपने वस्त्रों को धोकर दूसरे कपड़े पहने।

ADVERTISEMENT

मानसिंह ने राजधानी में पहुंचकर अकबर बादशाह से प्रताप और उसके बीच हुई घटना को बताया। अकबर ने मानसिंह के अपमान का बदला लेने के लिए राणा प्रताप के साथ युद्ध करने का निश्चय किया।

सलीम अकबर का उत्तराधिकारी था। अकबर ने प्रताप से युद्ध करने के लिए सलीम को अपनी विशाल सेना तैयार कर मानसिंह तथा मोहब्बत खां को साथ में लेकर युद्ध के लिए रवाना हुआ।

राणा प्रताप को मानसिंह के जाते ही यह मालूम हो गया कि अब मुगल फौज के आक्रमण में देर नहीं हो सकती। इसलिए अपने सरदारों को बुलाकर कमलमीर में उसने परामर्श किया और सम्राट अकबर की सेना के साथ युद्ध करने के लिए उसने 22000 राजपूतों को तैयार किया।

इन दिनों में पहाड़ पर रहने वाले बहुत से लड़ाकू भील प्रताप के साथी बन गए थे। इसलिए वे सब के सब युद्ध के लिए तैयार हो गए अपनी इस सेना को लेकर राणा प्रताप अरावली पर्वत के सबसे बड़े मार्ग पर पहुंच गया।

हल्दीघाटी

जिस स्थान पर जाकर अपनी सेना के साथ प्रताप मुगल फौज के आने का रास्ता देखने लगा वह नवानगर और उदयपुर के पश्चिम दिशा में था। यह पहाड़ी स्थान घने जंगलों से घिरा हुआ था। उस स्थान पर छोटे-छोटे नाले व नदियां बह रही थी। उदयपुर से उस स्थान के लिए जाने वाला मार्ग बहुत तंग कठोर और भयानक था।

मार्ग की चौड़ाई बहुत कम थी। और उस स्थान से बहुत से आदमियों का एक साथ निकलना बहुत मुश्किल था। वहां पर खड़े होकर देखने से पहाड़ और जंगलों के सिवा कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। इस स्थान का नाम हल्दीघाटी है। इसी स्थान पर हल्दीघाटी का युद्ध लड़ा गया था ।

उस हल्दीघाटी के ऊंचे शिखरों पर खड़े होकर राणा प्रताप के समस्त राजपूत और भील युद्ध के लिए तैयार थे। और उन सब के हाथों में धनुष बाण थे। उस भयंकर पहाड़ी पर खड़े होकर अपने शूरवीर सरदारों के साथ प्रताप मानसिंह के आने का रास्ता देखने लगा.

1576 ई के जुलाई महीने में दोनों ओर की सेनाओं का आमना सामना हुआ और भीषण रूप से युद्ध  आरंभ हो गया दोनों तरफ के सैनिकों और सरदारों ने जिस प्रकार की मार- काट शुरू की। उससे दोनों तरफ के शूरवीर योद्धा घायल होकर जमीन पर गिरने लगे। बहुत समय तक भीषण मार काट के बाद भी किसी प्रकार की निर्बलता किसी तरफ दिखाई नहीं पड़ रहा था।

राजपूत और भील सरदारों के साथ प्रताप मारकाट करते हुए आगे बढ़ने लगा। मुगलों की विशाल सेना को पीछे हटाकर आगे बढ़ना बहुत मुश्किल काम था। अब दोनों ओर की सेनाओं नजदीक पहुंचकर तलवार और भालो की भयानक मार कर रहे थे।

हल्दीघाटी के पहाड़ी मैदान में मारकाट करते हुए सैनिक कट कट कर पृथ्वी पर गिर रहे थे। मुगलों का बढ़ता हुआ जोर देकर प्रताप सिंह अपने घोड़े पर प्रचंड गति के साथ शत्रु सेना के भीतर पहुंच गया और वहां मानसिंह को खोजने लगा। इसी समय मानसिंह हाथी पर बैठा हुआ दिखाई दिया।

और प्रताप ने अपने घोड़े चेतक को आगे बढ़ाया और मानसिंह के ऊपर उसने जोरदार वार किया उसकी तलवार से मानसिंह के कई अंगरक्षक मारे गए। प्रताप के वार का जवाब देते हुए मानसिंह ने भी राणा पर वार किया। उससे बचकर फिर महाराणा प्रताप ने अपने घोड़े को बढ़ाया और मानसिंह पर जोरदार भाले का प्रहार किया।

उस भाले से मानसिंह के लोहे के हौंदे से टकराया और मानसिंह बच गया। उसी समय मानसिंह का महावत प्रताप की तलवार से मारा गया। इसी समय प्रताप का घोडा चेतक घायल हो गया था । लेकिन प्रताप को मुग़ल सैनिकों ने घेर लिया था ।

महाराणा प्रताप की सेना कमजोर पड़ने लगी । प्रताप के सिर पर मेवाड़ का मुकुट लगा हुआ था । उसी मुकुट को निशाना बनाकर शत्रु प्रताप पर हमला कर रहे थे। राणा के आस पास राजपूतों की संख्या कम हो गयी थी। युद्ध की स्थिति बिगड़ता जा रहा था । और कुछ समय बाद शत्रुओं की विशाल सेना ने प्रताप को चारों तरफ से घेर लिया ।

प्रताप के शरीर में बहुत से जख्म हो गए थे । खून इतना बह गया था की रक्त से उनका कपड़ा बिलकुल भीग गया था । इसके तुरंत बाद झाला का शूर वीर सामंत मन्नाजी तेजी के साथ हुआ प्रताप के समीप पहुँच गया और प्रताप के सर से मेवाड़ का राजमुकुट को उतारकर उसने अपने सिर पर रख लिया ।

मन्ना जी के आते ही प्रताप घायल अवस्था में रण क्षेत्र से बाहर निकल गए। मन्ना जी ने अपने सैनिकों के साथ शत्रुओं में भारी मार काट किये । अंत में मन्ना जी शत्रुओं से घिर गए और मारे गए ।

प्रताप के युद्ध क्षेत्र से बाहर निकलते ही दो मुंगल सैनिक उनका पीछा करने लगे और शक्ति सिंह भी इनके पीछे थे । प्रताप ने इन दो मुगलों को मार गिराया । इसी समय प्रताप का घोड़ा चेतक युद्ध में घायल हो जाने के कारण मृत्यु को प्राप्त हो जाता है । शक्ति सिंह ने अपने भाई प्रताप को गले से लगाया और अपना घोड़ा देकर प्रताप को वंहा से सुरक्षित जाने दिया .

हल्दीघाटी का युद्ध इतना भयानक था की इसमें  राणा प्रताप के 22000 राजपूतों में 14000 राजपूत मारे गए और 8000 राजपूत बचकर उद्यपुर वापस आ गए थे । इस युद्ध में राजपूतों के कई सरदार मारे गए थे । मुगलों को भी भारी नुकसान हुआ था ।

हल्दीघाटी का युद्ध किसी ने नहीं जीता था यह तो युद्ध का आरंभ था। महाराणा प्रताप घायल होने के कारण उन्हें युद्ध से बाहर निकलना पड़ा । इस युद्ध के बाद मेवाड़ पर प्रताप का अधिकार बना रहा । अकबर के द्वारा जीते हुए क्षेत्रों को प्रताप ने फिर से अपने कब्जे मे ले लिया था।

हल्दीघाटी का युद्ध इतना भीषण था की आज भी वहाँ के जंगलों में कई सबूत मिलते है ।

हल्दीघाटी का युद्ध