मौर्य वंश का संस्थापक, Maurya vansh Ka Sansthapak
मौर्य वंश के पहले मगध मे नन्द वंश का साम्राज्य था । नन्द वंश के राजा हमेशा भोग विलास मे दुबे रहते थे इस कारण इनका ध्यान अपनी प्रजा के ऊपर कम रहता था.
भोग विलास मे डूबे रहने के कारण प्रजा के हित मे कोई कार्य नहीं होता था । नन्द वंश के अंतिम राजा धाननंद अत्यंत क्रूर शासक था । वह अपनी प्रजा के उपर कई तरह के कर लागा रखे थे । जिससे प्रजा की आय का एक बहुत बड़ा भाग राजा के पास चला जाता था ।
तथा उनके ऊपर बहुत अत्याचार और शोषण करता था । और वह क्षत्रिय वंश को हमेशा के लिए नष्ट करना चाहता था । नन्द वंश के इन सभी कारणो से मगध की प्रजा बहुत ही रुष्ट हो गए थे ।
एक कथा के अनुसार धाननंद ने भरी सभा मे चाणक्य का अपमान किया था । इसके बाद चाणक्य इस अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए एक बालक जिसका नाम चन्द्रगुप्त मौर्य था ।
चन्द्रगुप्त मौर्य के पिता पहले पीपलीवन के राजा थे, नन्द वंश ने इनकी हत्या कर राजगद्दी पर बैठ गया था ।
चाणक्य ने बालक चन्द्रगुप्त मौर्य को अपने संरक्षण में लेकर पूर्ण रूप से प्रशिक्षित किया तथा उसे युद्ध कौशल मे निपुण बना दिया था।
चाणक्य और चन्द्रगुप्त मौर्य ने भारत के कई राजाओं के साथ मिलकर एक सेना का गठन किया और नन्द वंश पर कई हमले किए अंततः नन्द वंश पराजित हुआ और चन्द्रगुप्त मौर्य और आचार्य चाणक्य ने मिलकर मौर्य वंश का स्थापना किया ।
तथा इसके पश्चात इतिहास के कई लेखों मे भी चन्द्रगुप्त मौर्य को मौर्य वंश का संस्थापक माना जाता है ।