महाराणा कुंभा का इतिहास | Rana Kumbha In Hindi

महाराणा कुंभा राणा मोकल के पुत्र थे। इनकी माता का नाम सौभाग्य देवी था। यह जेतमल सांखला की बेटी थी।शिलालेखों के अनुसार मोकल के एक रानी गौरम्बिका थी जो बाघेला वंश की थी। इनके अतिरिक्त माया कवंर ,केशर कवंर ,हेमकवंर कछवाहा ,मदालसा खेराड़ा अतिरूपकवंर चौहान मोकल की रानी थी।

महाराणा कुंभा
महाराणा कुंभा

कुंभा के अतिरिक्त मोकल के 6 पुत्र थे। एक पुत्री लाल बाई थी।  जिसका विवाह अचलदास खींची के साथ हुआ था।यह कुंभा से उम्र में बड़ी थी और मोकल की पहली संतान थी।

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महाराणा कुंभा का जन्म, Rana Kumbha History In Hindi 

कई लेखकों के अनुसार कुंभा को योगी बताकर उनके जन्म के बारे में कई प्रकार के तर्क दिए है जिनमे से ऐसा कहा जाता है कि एक  बार महाराणा मोकल द्वारका तीर्थ यात्रा के लिए  गए थे। उनके राजकीय वैभव को देखकर वहां योगी कीटकनाथ के शिष्य नंदिकेश्वर ने राजा होने के इच्छा अपने गुरु के सामने रखी। गुरु ने योग बल से उसके पूर्व शरीर को गुफा में रख दिया और उसे महारानी सौभाग्य देवी के गर्भ में प्रविष्ट करा दिया। समय पाकर यही योगी कुंभा के रूप में जन्म लिया।

महाराणा कुंभा को ग्रंथो में अतिमानव  बताया गया है। इनमे  इसकी तुलना राम,कृष्ण ,विष्णु से की गई है। इनका उद्देश्य सभवतः कुंभा की वीरता और महानता को वर्णित करता है।

राणा कुंभा का राज्य रोहण

मोकल की मृत्यु हो जाने के फलस्वरूप मेवाड़ में दो दल हो गए थे।  कुछ शत्रुओं के साथ हो गए और शेष सरदारों ने जिनमें राघवदेव लाखावत आदि ने मिलकर कुंभा का राज्य रोहण कर मोकल की मृत्यु का प्रतिशोध लेने का संकलप लिया। कुंभा राज्य रोहण करते ही सर्व प्रथम अपने षड़यन्त्रकारियों का दमन करना शुरू कर दिया। उसने मेवाड़ के सभी सहयोगी और सामंत राजाओं को सहायता के लिए बुलाया।

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विवाह और रानियाँ ,rana kumbha wife

गीत गोविन्द की मेवाड़ी टीका में कुंभा को कई प्रकार के श्रृंगार रस का ज्ञाता बताया गया है। तथा कुंभलगढ़ प्रशस्ति में वह तीनो लोको की रमणियों को मोहित करने  वाला बताया गया है। इसी प्रकार संगीतराज में लिखा है कि स्वप्न में भी यदि किसी राज कन्या ने उसको देख लिया तो उसको वरण करने की इच्छा जरूर करेगी। लेकिन इससे  यह कहा जा सकता है कि वह सुंदर देह धारी अवश्य था।

इनके विवाह के सबंध में  यह मानना है कि कई राजकन्याओं से जबरदस्ती विवाह  किये थे।  कुछ कन्याओं के पिता ने स्वयं ही डोला भेज दिया था। इन सभी महारानियों के नाम तो उपलब्ध नहीं है। तथा कई टीकाओं में वर्णित महारानी  अपूर्वदेवी, कुंभलदेवी,तथा  कुंभा के पुत्र रायमल की माता पुवाड़रेगभरत्न नाम है। जो मोटमराव अजमेर के ठाकुर की बेटी थी।

महाराणा कुंभा के पुत्र 

कुंभा के 11 पुत्रों का उल्लेख मिलता है। उनके नाम –

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  1. उदा
  2. रायमल
  3. नागराज
  4. गोपाल
  5. आसकरण
  6. अमरसिंह
  7. गोविन्ददास
  8. जैतसिंह महारावल
  9. खेता
  10. अचलदास

एक पुत्री भी थी जिसका नाम रमा बाई था। जिनका विवाह गिरनार के चुडासमा राज मंडलीक के साथ हुआ था। जिस पर मोहम्मद बेगड़ा ने आक्रमण  किया और वह हार गया और हिन्दू धर्म छोड़कर मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया।  उसके बाद रमाबाई लौटकर मेवाड़ आ गई। यहाँ जावर ग्राम उसे जागीर में दे दिया गया।

यह संगीत शास्त्र की ज्ञाता थी। कुम्भलगढ़ पर दामोदर का मंदिर ,कुंडेश्वर का मंदिर की दक्षिण की तरफ एक सरोवर तथा  जावर में रामकुंड और रामस्वामी के मंदिर भी बनवाया।

महाराणा कुंभा का व्यक्तित्व 

मेवाड़ के राजाओं में सांगा को छोड़कर अन्य कोई राजा महाराणा कुंभा के समान इतना अधिक शक्तिशाली नहीं था। जिसने कई वर्षों तक मुस्लिम सुल्तानों के साथ युद्ध किया और निरन्तर विजयी रहे। उनकी सफलता का मुख्य कारण उसका विशिष्ट वयक्तित्व था।

महाराणा कुंभा को निर्भय और निशंक माना जाता है।  मोकल की मृत्यु के समय मेवाड़ की स्थिति कमजोर हो गई थी। और राठौड़ो का प्रभाव भी बढ़ने लगा था। इन सभी संकटो का सफलता पूर्वक सामना करके कुम्भा ने राज्य विस्तार का काम जारी रखा।

मालवा और गुजरात के सुल्तानों ने जब  एक साथ मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया और उस समय में नागौर एवं मारवाड़ के राठोड़ो का भी असहयोग चल  रहा था। इस कठिन समय में कुंभा ने दोनों सुल्तानों को हरा कर मेवाड़ को सुरक्षित रखा।

राज्य विस्तार

महाराणा कुंभा एक महान वीर थे। इन्होने अपने राज्य का विस्तार मेवाड़ के अतिरिक्त ,अजमेर ,मन्दसौर, पिंडवाड़ा, आबू, मंडोर, जावर, नागौर का भू -भाग कुछ समय तक उनके राज्य में  रहा  था। इनके अलावा मांडलगढ़, बूंदी, आमेर, सांभर, रणथम्भोर आदि स्थान विजय किये थे।

कुशल राजनीतिज्ञ

महाराणा कुंभा एक कुशल राजनीतिज्ञ थे। कुम्भलगढ़ प्रशस्ति में वर्णित है कि वह साम दाम दंड और भेद काम में लाता था। वह योद्धाओं को आवश्यकता अनुसार बल से ,दण्ड देकर और सामन्तों को नवीन उर्वरा भूमि देकर प्रसन्न करता था। उसने जीते हुए राज्य को अपने राज्य में न मिलाकर केवल उनसे कर वसूलता था।

प्रजा के हित के लिए इन्होने कई महत्वपूर्ण कार्य किये। चित्तौड़ पर रथ मार्ग ,कई तालाब व बावड़िया बनवाई। कुम्भलगढ़, आबू, पिंडवाड़ा, बसंतपुर में इसी प्रकार के कई कार्य करवाये। कुम्भलगढ़ प्रशस्ति में इन्हे प्रजा पालक कहा  गया है। वह विश्व विख्यात दानी था। तथा उन्हें भोज और कर्ण के समान  दान से पृथ्वी की रक्षा करने वाला बताया गया है।

भवानी का उपासक कुंभा माँ सरस्वती का भी उपासक था। और परमार राजा भोज के  समान महान संस्कृत का ज्ञाता था।   और उसने संगीतराज नामक एक ग्रंथ भी लिखा था।

कला

महाराणा कुंभा एक महान निर्माता थे। उन्होंने अपने शासन काल में कई महत्वपूर्ण निर्माण कार्य करवाया था।  राज्य की ओर से कुछ लौकिक और कुछ धार्मिक कार्य  हुए थे।  कुंभा के राज्य की यह विशेषता थी की इतना निर्माण कार्य मेवाड़  में इसके पहले कभी नहीं हुआ था। इनमे चित्तौड़ में कीर्ति स्तंभ, कुम्भस्वामिका मंदिर, वराह का मंदिर,श्रृंगार चंवरी,जैन कीर्ति स्तम्भ के पास महावीरजी  का मंदिर। इसके अतिरिक्त कुम्भलगढ़ में मामादेव  मंदिर, रणकपुर का जैन मंदिर के कार्य हुए।

मूर्ती कला के क्षेत्र में कई अदभु कार्य किया गया। सूत्रधार मंडन, विaष्णु की कई हाँथो वाली अनन्त विश्वरूप त्रैलोक्य मोहन, त्रिविकम आदि की मूर्ती बनी। ये मूर्तियां आबू के कुंभस्वामी के मंदिर चितौड़ और एकलिंगजी  में मिलती है। कीर्ति स्तंभ हिन्दू पौराणिक देवी देवताओं की मूर्तियों का संग्रहालय है। इस प्रकार कुंभा के शासन काल को वास्तु कला के क्षेत्र में मेवाड़ का स्वर्ण युग कहा जा सकता है।

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