सम्राट अशोक भारत वर्ष का एक प्रतापी राजा था । यह चन्द्रगुप्त का पौत्र तथा बिन्दुसार का पुत्र अशोक, मौर्य वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था । यह दुनिया के महान शासकों मे से एक था । इसके बौद्ध धर्म के संरक्षक के रूप मे जाना जाता है । जिससे बौद्ध ग्रन्थों मे उसके बारे मे पर्याप्त जानकारी मिलती है ।

सम्राट अशोक का राज्यभिषेक | samrat ashok in hindi history | ashok samrat in hindi
बौद्ध परम्परा के अनुसार बिन्दुसार ने 27-28 वर्षों तक शासन किया था । बिन्दुसार चन्द्रगुप्त गुप्त की मृत्यु के बाद 300 ई.पू. गद्दी पर बैठा था और उसका शासन काल 273-272 ई.पू. तक था ।
अशोक के अतिरिक्त बिन्दुसार के और भी पुत्र थे । अपने शिलालेख मे अशोक अपने कई भइयों और बहनों का उल्लेख करता है ।
दिव्यवदान मे अशोक के दो भाई सूसीम और विगतशोक का उल्लेख मिलता है. सिंहली के बौद्ध ग्रन्थों मे इन्हें सुमन और तिष्य कहा गया है ।
अपने अभिलेखों में सम्राट अशोक(samrat ashoka) ने अपने शासन काल की घटनाओं का उल्लेख अपने राज्यभिषेक के समय से करता आ रहा था ।
अशोक राज्य का राज्य का वास्तविक उतराधिकारी नहीं था । बिंदुसार अपने बड़े पुत्र सुसीम को उत्तराधिकारी बनाना चाहता था, पर उसके मंत्री अशोक के पक्ष मे थे । प्रधानमंत्री राधागुप्त ने अशोक का समर्थन किया ।
सिंहली बौद्ध ग्रंथ महावंश के अनुसार, अशोक अपने बड़े भाई बड़े भाई की हत्या कर शासक बना । और दीपवंश ग्रंथ मे अशोक के द्वारा अपने 99 भाइयों की हत्या बताई गई है ।
बिंदुसार की मृत्यु के बाद अशोक को अपने भइयों के विरोध का सामना करना पड़ा और चार वर्षों के बाद 269-68 ई.पू. मे अशोक का राज्यभिषेक हो सका ।
अशोक(ashok samrat) का जीवन
बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार अशोक अपने प्रारम्भिक जीवन मे अशोक अत्यंत क्रूर था । और दिखने मे भी अच्छा नहीं था । और एक बार जब अंतःपुर की रनियों ने उसकी कुरूपता की हंसी उड़ाई तो उसने सभी को जिंदा जलवा दिया था ।
अपनी क्रूरता के कारण उसे चंडाशोक के नाम से भी जाना जाता था ।
रानियाँ और पुत्र
सम्राट अशोक के शासन काल के बड़े भाग मे असिन्धमित्रा उसकी प्रमुख रानी थी । इनके अतिरिक्त तिष्यरक्षिता, कारुबांकी(पुत्र तीवर का नाम रानी के लेख मे मिलता है जो इलाहाबाद के स्तम्भ पर खुदा हुआ है),पद्मावती(दिव्यवादन के अनुसार).
यह प्रमुख रानी नहीं थी किन्तु उसका पुत्र धर्मविवर्धन य कुणाल शासन का उतराधिकारी राजकुमार था । सिंहली बौद्ध ग्रंथ मे महेंद्र और संघमित्रा को अशोक के पुत्र और पुत्री कहा जाता है जिन्होने लंका मे बौद्ध धर्म का प्रचार किया ।
महावंश के अनुसार जब अशोक बिदिशा मे प्रांतीय शासक था तब वह वहाँ के एक धनी वणिक की कन्या से विवाह किया । महेंद्र और संघमित्रा उसकी संतान थे ।
कलिंग युद्ध
कलिंग का युद्ध सम्राट अशोक के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण घटना है। सम्राट अशोक के तेरहवें शिलालेख मे इस युद्ध के बारे मे जानकारी मिलती है ।
यह युद्ध उसके राज्यरोहण के तेरहवें वर्ष मे हुआ था ।
लेख मे इस युद्ध के बारे मे विस्तार से वर्णन है । इस युद्ध मे –
1,50,000 लोग बंदी बनाए गए ।
1.00,000 लोग मारे गए तथा इतने ही लोग बाद मे युद्ध के परिणाम स्वरूप घायल हुए लोग मरे।
ये संख्या केवल कलिंग के लोगों की है और स्वयं अशोक की सेना मे मारे गए सैनिक इसमें शामिल नहीं है । कलिंग जैसे छोटे राज्य के लिए यह संख्या बहुत अधिक थी ।
युद्ध जीतने के बाद कलिंग सम्राट अशोक के साम्राज्य का एक प्रांत बना जिस पर राजकुल का एक राजकुमार तोसाली मे रहते हुए अशोक के प्रतिनिधि के रूप मे शासन करने लगा ।
कलिंग युद्ध के इस भारी नरसंहार को देखकर अशोक सम्राट का हृदय परिवर्तन हुआ और उसके बाद सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया ।
इसके पश्चात अशोक संबोधि गया अर्थात उस स्थान पर गया जहाँ बुद्ध ने परम ज्ञान प्राप्त किया था ।
उसके प्रथम लघु शिलालेख मे अशोक कहता है – ढाई वर्षों से अधिक समय हो गया जब से मै बौद्ध उपासक हूँ किन्तु एक वर्ष तक मैंने अधिक प्रगति नहीं की, अब एक वर्ष से अधिक समय से मै भिक्षु संघ के अधिक पास आ गया हूँ और अपेक्षाकृत अधिक उत्साही हो हो गया हूँ ।
मगध का इतिहास
अशोक और बौद्ध धर्म
बौद्ध धर्म के अहिंसा के सिद्धांत ने अशोक को बहुत प्रभावित किया । कलिंग युद्ध के रक्तपात ने उसके सवेदनशील मन को छू लिया था, और इस युद्ध के बाद उसने कोई भी युद्ध नहीं किया । उसने धर्मघोष की नीति अपनाई । उसने अपने राज्य मे पशु पक्षियों को मारने पर प्रतिबंध लगा दिया था । उसने ऐसे यज्ञ को भी बंद करवा दिया था जिसमे भारी संख्या मे पशुओं का वध होता था ।
एक धर्मनिष्ठ बौद्ध के रूप मे अशोक ने कई बौद्ध तीर्थ स्थलों की यात्राएं की । जिसमे से बोधगया, कनकमुनी बुद्ध स्तूप तथा बुद्ध की जन्म स्थली लुम्बिनी था।
राजतरिंगिनी के सम्राट अशोक ने कश्मीर मे श्रीनगर की स्थापना की और वहाँ 500 बौद्ध विहार बनवाएँ। उसने पर्वत-शिखरों के समान ऊंचे स्तूपों का निर्माण करवाया । सिंहली बौद्ध ग्रंथ के अनुसार, अशोक ने
84000 बौद्ध विहारों का निर्माण करवाया सांची का प्रसिद्ध बौद्ध स्तूप अशोक के समय मे ही निर्मित हुआ था । साथ ही यह माना जाता है कि सारनाथ के धमेख स्तूप का निर्माण भी अशोक ने करवाया था ।
बौद्ध धर्म के संरक्षक के रूप मे अशोक ने संघ की आंतरिक स्थिति को व्यवस्थित करने मे विशेष रुचि दिखाई । सम्राट अशोक ने तृतीय बौद्ध संगीति बुलाई गई जिसमे अशोक की सक्रिय भूमिका रही । इसके बाद कई भिक्षु टोलियों बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अलग अलग प्रदेशों मे भेजा गया ।
स्वयं अशोक के पुत्र तथा पुत्री, महेंद्र और संघमित्रा लंका मे बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए गए ।
अशोक का धम्म
सम्राट अशोक बार बार धम्म(धर्म) की बात करता है । सम्राट अशोक ने स्वयं एक स्थान पर प्रशन करते है की धर्म क्या है और अपने प्रश्नों का स्वयं उत्तर देते हुए इसके बारे मे बताया है ।
- साधुता या बहूकल्याण
- दया
- दान
- सत्य
- पवित्रता
- माधुर्य
धर्म को कार्य रूप मे लाने के लिए अशोक ने कुछ आचरण बताए है ।
- माता-पिता तथा गुरुजनों की सेवा
- गुरुजनों के प्रति सम्मान
- ब्राह्मण-श्रमणों, संबंधियों, मित्रों और सेवकों मजदूरों के प्रति उचित व्यवहार करना
- वृद्ध जनों को दान देना
- पशुओं का वध न करना
- फिजूलखर्चा नहीं करना
इन नियमों को देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि अशोक के धर्म का मुख्य कारण सांसारिक जीवन एवं सामाजिक सम्बन्धों मे पवित्रता तथा सुव्यवस्था स्थापित करना था ।
अशोक ने जो धर्म नहीं है उसके बारे मे भी कहा है –
- क्रूर स्वभाव
- अन्य प्राणियों के प्रति प्रेम भावना का न होना ।
- क्रोध
- मान अथवा अंहकार
- ईर्ष्या
अपने कई लेखों मे अशोक ने धर्म का आचरण करने पर स्वर्ग की प्राप्ति और परलोक मे सुख एवं आनंद मिलने की बात बताया है । उसने समाजों अथवा उत्सवों पर रोक लगा दी जिनमे केवल नृत्य, संगीत और पशुवध का बोलबाला रहता था । उसने धर्म श्रवण का आयोजन प्रारम्भ किया जिनमे धर्म की चर्चा होता था और जन सामान्य इसे सुनकर लाभ उठाते थे ।